जखोली विकासखण्ड के दर्जनों गांव के केन्द्र राजकीय इण्टर काॅलेज में लगने वाले सिलगढ़ महोत्सव में स्थानीय प्रतिभाओं के साथ ही कृषकों और आम आदमी के लिए असल मायनों सार्थक सिद्ध हो रहा है। क्या कुछ खास है .
उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों पर लगने वाले मेलों का अपना अलग ही हमत्व होता है। पहले धार्मिक सांस्कृतिक और आपसी भाई-चारे, मिलन और सौहार्द के साथ ही सामाजिक ताने-बाने को एक सूत्र में बांधे रखने में इन मेलों की बड़ी भूमिका होती थी लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकता और सूचना क्रांन्ति ने इन मेलों की परिपाठी ही बदल कर रख दी थी। अब मेले केवल और केवल राजनीतिक मंच का रूप लेते जा रहे हैं यही कारण था कि लोग इन मेलों से कटते जा रहे थे। इन मेलो की एक कसौटी ये भी रही है कि बाहर से बड़े कलाकरों की मंहगी फीस देकर बुलाया जाता था लेकिन स्थानीय कलाकारों को तवजो नहीं दी जाती थी लेकिन पिछले दो सालों से संचालित हो रहे सिलगढ़ विकास महोत्सव इस क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लिए काफी फायदेमंद और सार्थक नजर आ रहा है। इस मेले पूरी तरह से स्थानीय प्रतिभाओं को मंच प्रदान किया जा रहा है और क्षेत्र के कलाकार अपने प्रतिभाओं को हुनर प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में कही ना कहीं स्थानीय कलाकार आगे बढ़ने के लिए परिपक्व होता जा रहा है।
मेले में विभिन्न सरकारी विभागों की प्रदर्शनी के जरिए जहाँ सरकार की महत्वकांक्षी और कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी मिल रही है। वहीं कृषकों को 19 सौ रूपये का हल विद्यायक निधि के माध्यम से यहां केवल चार सौ रूपये में दिया जा रहा है। ऐसे में किसान इस से काफी खुश हैं। किसानों का कहना है कि मेले के माध्यम से पहली बार कृषि यंत्र इतने सस्ते दामों में दिए जा रहे हैं। यहीं कारण है कि सिलगढ़ महोत्सव दो ही साल में अपना विस्तार ले चुका है और क्षेत्र की जनता बढ़-चढ़ कर भाग ले रही है।
दो साल पूर्व आरम्भ हुए इस मेले ने कम ही समय में क्षेत्रीय जनता के बीच अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना दिया है और इस मेले के मंच से कई प्रतिभाओं को उभरने का अवसर मिल रहा है।
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रुद्रप्रयाग/कुलदीप राणा