श्रीनगर में ऐतिहासिक माधो सिंह भंडारी मेले की धूम

January 11, 2019 | samvaad365

श्रीनगर गढ़वाल के कीर्तिनगर के मलेथा गांव में इन दिनों त्यौहार जैसा माहौल है। माहौल हो भी क्यों ना ऐतिहासिक मलेथा और उसकी प्राचीन गुल के निर्माता माधो सिंह भण्डारी को याद करने के लिए  मेले का आयोजन जो किया गया है। आखिर कौन है माधो सिंह भण्डारी ? जिसकी स्मृति में हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है।

नाचते गाते ये लोग जश्न मनाती महिलाएं ऐसा लगता है की जैसे पूरी फिजा में जश्न का माहौल हो। ये जश्न कीर्तिनगर के मलेथा गांव में मनाया जा रहा है। जो पिछले कई वर्षो से मेले के रूप मे मनाया जाता आ रहा है। इस मेले में वीर शिरोमडी माधो सिंह भण्डारी के गांव में ही बने मन्दिर में पूजा अर्चना की जाती है, मन्दिर में ही माधो सिंह भण्डारी की आदिकाल मुर्ति स्थापित है। मेला माधो सिंह भण्डारी के बलिदान को याद करने के लिए मनाया जाता है।

माधो सिंह भंडारी, जिन्हें माधो सिंह मलेथा भी कहा जाता है, गढ़वाल के महान योद्धा, सेनापति और कुशल इंजीनियर थे। जो आज से लगभग 400 साल पहले पहाड़ का सीना चीरकर नदी का पानी अपने गांव लेकर आये थे। गांव में नहर लाने के उनके प्रयास की यह कहानी भी काफी हद तक बिहार के दशरथ मांझी से मिलती जुलती है। दरअसल माधो सिंह भण्डारी के गांव में एक बार  सूखे के हालात पैदा हो गये थे। गांव में एक अन्न का दाना ना रहा। माधो सिंह अपने गांव में पानी पहुंचाने की जद्दोजहद में जुट गए। मलेथा गांव के  नीचे अलकनंदा नदी बहती थी जिसका पानी गांव में लाना संभव नहीं था। वहीं गांव के दाहिनी तरफ चंद्रभागा नदी बहती थी।

चंद्रभागा का पानी भी गांव में नहीं लाया जा सकता था क्योंकि बीच में पहाड़ था। इसके बावजूद भी माधोसिंह ने इसी पहाड़ के सीने में सुरंग बनाकर पानी गांव में लाने की ठानी। कहा जाता है कि उन्होंने श्रीनगर दरबार और गांव वालों के सामने भी इसका प्रस्ताव रखा था, लेकिन दोनों जगह उनकी खिल्ली उड़ायी गयी थी। आखिर में माधो सिंह अकेले ही सुरंग बनाने के लिये निकल पड़े। चन्द्रभागा नदी से लगे पहाड़ को खुदवाकर 100 मीटर की सुरंग आरपार कर दी। गांव में आज भी चन्द्र भागा नदी से 200 मीटर की नहर बनी हुई है और इसके बाद पहाड़ को आरपार करती 100 मीटर की सुरंग। किवदन्ती के अनुसार जब सुरंग में पानी पास नहीं हुआ तो उनके सपने में देवी आयी जिसने उनसे किसी प्रियजन की बलि मांगी और उन्होंने अपने सबसे प्रिय पुत्र की बलि दी। जिसके बाद गांव की खेती आबाद हो गई आज भी मलेथा गांव समेत आसपास के दर्जनों गांव की खेती उसी सुरंग के जरिये आ रही पानी से आबाद हो रही है ।

वहीं आज भी  गांव की महिलाएं शौर्य रस से भरे गीत गाती है और माधो सिंह भण्डारी को देवता के रूप में पूजती हैं। वहीं पुत्र बलि को इतिहासकार भी सच घटना मानते है। गढवाल विवि के पूर्व प्रोफेसर व इतिहास की कई पुस्तकों के रचियता शिव प्रसाद नैथानी कहते हैं कि उस इतिहास में हिमाचल में इस तरह की बलियों के प्रमाण मिले हैं और ये घटना भी सत्य है।

लेकिन आज सरकार की उदासीनता के चलते ऐतिहासिक मलेथा की गुल जगह जगह से क्षतिग्रस्त है ऐतिहासिक धरोहर की प्रतीक ये गुल विशालकाय पत्थरों से प्राचीन काल में माधो सिंह भण्डारी ने अपने हाथों से बनाई थी जो आज भी इजिनियरिंग का बेजोड़ नमूना है। सुरंग आज बाहर से सीमेन्ट से संरक्षित कर तों दी गई हैं। लेकिन यह सुरंग जर्जर स्थिति में है। वहीं इस सुरंग को देखने आज भी बाहर से लोग आते हैं जो इस सुरंग को पर्यटन से जोड़ने की बात करते हैं। गांव में त्याग व बलिदान की मूरत माधो सिंह भण्डारी की याद में गांव में प्रत्येक साल एक मेला आयोजित होता है जिसमें माधो सिंह भण्डारी के गीत गाये जाते हैं। आज गढवाली भाषा में उनके नाटक व गीत भी देखने को मिलते हैं।

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श्रीनगर/कमल किशोर पिमोली

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