वृन्दावन : जीव ब्रह्म को मिलन रास है, रास तो तोय रचनो है…. ब्रजभाषीय काव्य प्रस्तुति से अध्यात्म में डूबा मलूकपीठ

October 31, 2021 | samvaad365

ब्रजभाषा में रचित विभिन्न प्रमुख कवियों द्वारा रचित एवं पठित प्रभु भक्ति से ओत-प्रोत काव्य रचनाओं से मलूक पीठ आश्रम अध्यात्म के रंग से सरोबार हो उठा। काॅरोना महामारी के चलते विश्व भर के सभी धर्म, सम्प्रदाय एवं वर्गों से काल कलवित मनूष्य मात्र की मुक्ति हेत वंशीवट स्थित मलूक पीठ आश्रम में मलूक पीठ सेवा संस्थान द्वारा आयोजित तथा जलगांव के सुप्रसिद्ध डाॅक्टर पी के पाटिल के मनोरथी भाव से कार्यक्रमों की श्रृंखला के अंतर्गत चल रही श्रीमद् भागवत सप्ताह के चतुर्थ दिवस पर रविवार को प्रातःकालीन सत्र में ब्रजभाषीय काव्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। ब्रज भाषा के प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण हेतु मलूक पीठ सेवा संस्थान के ही एक प्रकल्प ब्रज साहित्य न्यास द्वारा आयोजित इस ब्रजभाषीय कवि सम्मेलन में ब्रजभाषा के अनेकों सुप्रसिद्ध कवियों ने ब्रजभाषा में रचित अपनी प्रस्तुतियों से समस्त मलूक पीठ एवं उपस्थित धर्मानुप्रेमीजनों को आध्यात्म के रस से सरोबार कर दिया।

काव्य प्रस्तुति में ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि हरिबाबू ‘ओम’ ने ‘जीव ब्रह्म को मिलन रास है, रास तो तोय रचनौ है’ की अपनी प्रस्तुति से द्वापरकालीन रासलीला के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण द्वारा दी गयी शिक्षा को सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया। इसी अवसर पर नारायण सिंह ‘किलौनी’ द्वारा अपनी रचना ‘ब्रजरज तन सों लपेट करि नाच सकै वो कृष्ण है’ प्रभु श्री कृष्ण द्वारा प्रकृति को दिये गये सम्मान को समझाने का प्रयास किया गया। वहीं ‘ब्रज प्रेम-भक्ति को लड़ुआ है, चखियो पर चूरौ मत करियो’ की अपनी प्रस्तुति के माध्यम से अशोक ‘अज्ञ’ ने ब्रज की महिमा पर प्रकाश डाला।

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इसी क्रम में राधा गोविन्द पाठक की शब्द सांचे रचै पद अनूठे रूचें, अमर अद्वितीय की रचना कोऊ कहै ब्रजराज अबोध, सत्यप्रकाश शर्मा की रचना देवी महा सुरम्य जगदम्बिके राधिक की प्रिय गऊ माता और रेणू उपाध्याय ने अपनी कृति धर्मध्वजी सब सांची जानै क्या कहूं निज रूआरी की द्वारा भगवान श्री कृष्ण और उनकी लीलाओं और रसिकजनों का उन लीलाओं के प्रति भाव को अपने शब्दों में उकेरने का प्रयास किया। वहीं दूसरी ओर के सी गौड़ ब्रजवासी ने पुरोहित भी तू है और यजमान तू है, मोहन मोही ने प्रातः सौं निशि तक या तन की तेरी जिम्मेदारी, दिवाकर शर्मा ने आय गयो रे माधव गैया चराय के और समुन पाठक ने भूल गयो ब्रज श्याम भले पर मोते श्याम न जाय बिसारौ की अपनी काव्य प्रस्तुतियों से सभी श्रोताओं को भक्ति के रंग में ओत-प्रोत कर दिया। इस काव्य सम्मेलन की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध भागवत वक्ता मलूक पीठाधीश्वर संत डाॅ आचार्य राजेन्द्र दास जी महाराज ने तथा काव्य सम्मेलन का संचालन हरिबाबू ओम ने किया। इस अवसर पर बरसाना स्थित मान मन्दिर से पधारे ब्रजगौरव संत रमेश बाबा ने सभी आगंतुकों को आशीर्वचन दिया तथा समस्त कवियों को उत्तरीय ओढ़ाकर सम्मानित किया ।

संवाद365,अमित शर्मा 

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