पहाड़ में मेहनत से कैसे होता है स्वरोजगार… इसकी मिसाल देते हैं रूद्रप्रयाग के कपिल

September 17, 2019 | samvaad365

रूद्रप्रयाग: भले ही पहाड़ के परिपेक्ष में अक्सर ये कहावत कही जाती हो कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के कभी काम नहीं आती है. लेकिन इस कहवात से बार-बार पहाड़ को धिक्कारने वालों को कई युवा आईना दिखा रहे हैं. अगस्त्यमुनि विकासखण्ड के टेमरियां गाँव के कपिल शर्मा ने अपने गांव में कृषि, बागवानी, मत्स पालन और डेरी व्यवसाय को आजीविका का एक बेहतर जरिया बनाकर आज एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जिसकी नजीर पूरे क्षेत्र में दी जाती है.

पहाड़ के हर नौजवान की तरह नौकरी की तलाश में कपिल भी चंढीगढ़ गया था, एक प्राइवेट कम्पनी में मार्केंटिंग की नौकरी मिली लेकिन हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद भी परिवार चलाने लायक कमाई नहीं हो पाई. एक साल में ही नौकरी से मन भर गया तो वापस अपने गांव आ गए. घर का इकलौता लड़का होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी भी कपिल के कंधों पर थी, इसलिए घर गांव में रहकर ही कुछ करने का मन बनया. शुरूआत के दिनों में कुछ खेतों में मौसमी सब्जी का उत्पादन शुरू किया तो पहले ही सीजन में 40 हजार का मुनाफा हुआ.

मन में आशा जगी तो ग्रामीणों के बंजर पड़े खेतों को भी उन्होंने लीज पर ले लिया और फिर उनमें चकबंदी कर सब्जियां लगा दी. पूरी जी तोड़ मेहन की तो सफलता कदम चूमने लगी, अच्छा खासा मुनाफा भी होने लगा. इस कार्य में परिवार का साथ मिला भी अच्छा साथ मिला तो कारोबार फलने-फूलने लगा.

इसके बाद कपिल पशुपालन विभाग के सम्पर्क में आया तो डेरी व्यवसाय का कार्य भी आरम्भ कर दिया. पहले एक गाय रखी और मुनाफ अच्छा देख धीरे-धीरे गायों की संख्या में भी इजाफ कर दिया. आज कपिल के पास पूरी 17 दुधारू गाय हैं जिन से हर रोज करीब 70 लीटर दूध अगस्त्यमुनि के साथ ही नजदीकी मार्केंट में बिकता है. वहीं सब्जी से भी वह अच्छा मुनाफा कमा रहा है। जबकि अपने साथ दो अन्य लोगों को भी रोजगार दे रखा है.

पहाड़ में बड़े पैमाने पर खेती बंजर होती जा रही है. जंगली जानवारों के आतंक से तंग आकर लोग खेती को छोड़ रहे हैं और रोजगार की तलाश में शहरों और महानगरों में बस रहे हैं. लेकिन अगर मेहनत, कर्मठता और जुनून हो तो किसी भी बाधा से पार पाया यजा सकता है. जिसका नायाब उदाहरण कपिल ने दिया है.

(संवाद 365/कुलदीप राणा)

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