इतिहास के पन्नों में दर्ज जलियांवाला बाग हत्याकांड,आज भी याद करने में रुह कांपती है

April 13, 2021 | samvaad365

13 अप्रैल साल 1919 का दिन बेहद दुखद दिन है जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं ,जिसें आज भी याद करने में रुह कांप जाती है ।  वैसे तो 13 अप्रैल को बैशाखी का पर्व मनाया जाता है , लेकिन 1919 में हजारों की तादाद में लोग बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में जमा हुए थे। वे लोग शांति के साथ प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन निहत्थे और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों को गोलियों से भून दिया गया। जलियांवाला बाग बेकसूरों के खून से भर गया।

दरसअल रोलैट ऐक्ट के विरोध में लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे ,खबर मिलते ही डायर सिपाहियों के साथ बाग में पहुंच गया और निहत्थी भीड़ पर गोली चलाने का फरमान सुना दिया। जलियांवाला बाग के गेट का रास्ता संकरा था और यहां सिपाही भर चुके थे। जान बचाने के लिए कई औरतें बच्चों के साथ कुएं में कूद गईं। वहां से बाहर नहीं निकल सका और हजारों जिंदगियां हमेशा के लिए शांत हो गईं।

ब्रिटिश सरकार की क्रूरता गोलियों के निशान के रूप में बाग की दीवारों पर आज तक मौजूद हैं। सरकारी दस्तावजों में मौत का आंकड़ा सिर्फ 380 बताया गया, लेकिन असल में वहां हजारों लोगों की मौत हुई थी। मरने वालों को लेकर कई अलग-अलग रिपोर्ट्स हैं। हालांकि बताया जाता है कि करीब 1650 राउंड फायर किए गए और 1 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सबसे ज्यादा प्रभावित किया तो वह यही घटना थी।

(संवाद 365/डेस्क)

 

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