जौनपुर विकास खण्ड लोक संस्कृति और पौराणिक मेलों, रिती रिवाजो के लिए पूरे भारत वर्ष मे जाना जाता है. इसी के तहत इस क्षेत्र का पौराणिक मौण मेला एक बार फिर से धूमधाम के साथ मनाया गया. अगलाड नदी मे हजारां लोगो ने मछली पकड कर ये मेला मनाया. मौण मेला मछली पकडने का एक मेला है. इस मेले मे यहां के महिला पुरूष एक साथ हजारो की संख्या मे टिमरू जो की पहाड मे एक झाडी है. इसके छाल को निकाल व पीस कर इसका रस निकाला जाता है. इस रस को यहां की अगलाड नदी में डाला जाता है. इसका इस्तेमाल मछलियों को मारने के लिए किया जाता है. लोगो का कहना है कि मौण मैले मे सामुहिक रूप से मछली मारने का फायदा मछलियों को ही होता है. जून अन्तिम सप्ताह में मानसून होने के कारण यमुना नदी उफान पर रहती है. जिस कारण यमुना की सारी मछलिया अगलाड नदी मे आ जाती है. जिससे मछलियों की संख्या ज्यादा हो जाती है. जिस कारण मछलियों को जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. ऐसे मे इस मेले से इनकी मात्रा सीमीत हो जाती है. साथ ही हजारो लोगो के नदी मे जाने से नदी मे जमी गन्दगी भी साफ हो जाती है. यह मेला तीन जिलो जिसमे टिहरी के जौनपुर विकास खण्ड देहरादून जिले के जौनसार क्षेत्र व उत्तरकाशी जिले का रंवाई क्षेत्र मिलकर मनाता है.
क्या है मान्यता
मान्यता है कि 1867 मे टिहरी के राजा गढवाल नरेश के द्वारा इस मैले का शुभारम्भ किया गया था. उस समय मे भी मछली मारना अपराध था अगलाड नदी मे मछलीयो की अधिकता थी तो उस समय गांव के कई सयाणो ने मिलकर राजा से मुलाकात की और एक दिन मछली मारने की अनुमती ली मान्यता है. कि तब स्वयं राजा यहां आए थे और लोगो के साथ मछलियां पकडी थी तब से लोग इस दिन को मेले के रूप में मनाने लगे लोगो का कहना है कि आज के दिन मछली पकडने से वन विभाग सरकार और प्रशासन भी उन्हे मना नहीं कर सकता है.
(जौनपुर/ सुनील सजवाण)
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