श्रीनगर: उत्तराखण्ड़ से मानसून के दौरान भयभीत करने वाली कई तस्वीरें सामने आई. कहीं गदेरे उफान पर रहे. तो कहीं नदियों से बाढ़ के हालात सामने आए. लेकिन हकीकत ये है कि अन्य सालों की अपेक्षा इस साल पहाडों में बारिश कम हुई है.
ऐसा हम नहीं बल्कि श्रीनगर में स्थित उच्च हिमालयी पादप संरक्षण केन्द्र के आकंडे कह रहे हैं. यही नहीं वैज्ञानिकों ने इससे आने वाले समय में कई संकट आने के संकेत दिए हैं. श्रीनगर में ‘हेप्रेक’ यानि उच्च हिमालय पादप संरक्षण केन्द्र के वैज्ञानिकों ने रूद्रप्रयाग के चौपता तुंगनाथ में लगे रिसर्च सेंटर में बारिश के जो आंकड़े जुटाये उन पर अब हैप्रेक के वैज्ञानिक हैरानी जता रहे हैं.
हैप्रेक संस्थान के वैज्ञानिक डॉ विजयकान्त पुरोहित ने बताया कि उतराखंड में मानसूनी सीजनम में सबसे ज्यादा बारिश होती है. लेकिन इस बार चौपता बुग्याल में अन्य सालों की अपेक्षा 20 एमएम बारिश कम हुई है. जो हिमालयी क्षेत्रों के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
दरअसल वैज्ञानिक इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ग्लोबलवार्मिंग मान रहे हैं. जिनका मानना है कि अब बारिश के बरसने का तरीका ही बदल गया है. बारिश हर जगह बरसने की बजाय कहीं कहीं हाई डेन्सिटी के साथ बरस रही है जिससे भूजल की जगह पानी जमीन के ऊपर तेजी से बह रहा है.
और नुकसान ज्यादा हो रहा है. हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय गढवाल विश्वाविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर मोहन पंवार का मानना है कि इससे आने वाले समय में भूजल की कमी से जूझना पड़ सकता है वहीं बारिश के बदले हुए मिजाज से भूकटाव की समस्या भी देखने को मिल सकती है.
मौसम में तेजी से आ रहे बदलाव का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हैप्रेक संस्थान द्वारा इस बार बर्फ के सीजन में तुंगनाथ में ही 10 फीट तक बर्फबारी नापी गई जो दो दशक में सबसे ज्यादा थी. लेकिन बारिश के ये आंकडे सामने आये तो जानकार भी चिन्ता में पड़ गये हैं.
(संवाद 365/कमल किशोर पिमोली)
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