एवरेस्ट फतह करने वाली उत्तराखंड की अमीषा चौहान की कहानी आपके रौंगटे खड़े कर देगी

September 2, 2019 | samvaad365

उत्तराखंड की अमीषा जिसने एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा कर देश और उत्तराखंड का नाम रौशन किया लेकिन ये इतना आसान नहीं था. अमीषा की कहानी जरूर आपके रौंगटे खड़े कर देगी. अमीषा 31 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए निकली. 12 अप्रैल को अमीषा ने चढ़ाई करना शुरू किया, अपने बेस से एवरेस्ट तक 4 छोटे कैम्प बनाए. जहाँ एक तय वक़्त तक पहुंचना होता है.

16 मई को वो अपने मुकाम से 100 मीटर दूर थी सिर्फ 2 घंटे में वो एवरेस्ट की चोटी पर होती लेकिन उनके शेरपा की ऑक्सिजन खत्म हो गयी. अमीषा के पास अभी एक सिलेंडर बचा था अगर दोनों ऊपर चले जाते तो फिर वापस आते समय दिक्कत हो सकती थी यानी कि ऑक्सिजन खत्म हो सकती थी. और जाहिर सी बात है ऑक्सीजन खत्म तो व्यक्ति खत्म. अब ऐसी स्थिति को देखते हुए अमीषा ने कैंप लौटना ही ठीक समझा यानी कि वो उपर नहीं गई वो उन्होंने टाल दिया. और वापस लौट आई.

Cried, wept ,cursed yet came back and made it to the top of the world in her "SECOND ATTEMPT".Many of us loose hope when we fail to fulfill our dreams and chasing them again becomes a nightmare filled with thoughts of failure and then we get to read and know about achievements of a passionate who defined that retrying is as important as your first attempt in fact it holds more ardor and zeal.It wasn't all good on 16 of may 2019 for Ameesha Chahuan from tehri uttarakhand, when she missed to conquer her much awaited dream from just 100 metres away. How painful it is to not only physically but emotionally to come this close and not achieve your dreams that you've longed for but what's more important is to hit back strong and be an example of being a true Inspiration.On 23rd of May 2019, Ameesha with enhanced passion and her quest summited the Highest peak of the world. With frostbite and injuries , Ameesha traveled a journey that'll be remembered in the books of accomplishments that crossed tough barricades.Ameesha Chauhan is a true Inspiration to the youth of this country who put miniscule troubles as an excuse and turn their back in front of the challenges they face and miss what's kept in store for them as a true reward.I salute to the spirit and passion of this great warrior , Ameesha Chauhan you've earned Respect.

Posted by Mayank Arya on Friday, 30 August 2019

जब वो अपने सबसे नजदीक वाले कैंप पहुंची तो झटका लगा. क्योंकि वहां पता लगा कि उनके ग्रुप के 2 लोग अपनी जान गंवा बैठे हैं. अमीषा कहती हैं कि ये सब देखकर वो रोई क्योंकि इतने पास आकर उनका सपना टूट सकता था.  ना उस वक़्त खाने को कुछ था ना प्यास बुझाने को पानी. अपने ऊपर गिरी बर्फ को खा कर जिंदा रही, अमीषा को लगा जैसे आज ये आखिरी दिन है उनका.  भगवान से प्रार्थना की घर वालों को याद किया और नींद आ गयी. अगली सुबह वो उतरने लगी पैरों में दर्द था. चलने की स्थिति में नहीं थी. लेकिन नीचे आ ही गई.

भीड़ ज्यादा होने के चलते इस बार एवरेस्ट पर कई हादसे हुए कई मौतें हुई. आमतौर पर होता ये है कि एक बार चूकने पर कोई जल्दी से वापस एवरेस्ट पर चढने की कोशिश नहीं करता. लेकिन अमीषा ने सोचा की अगली विंडो खुलते ही वो फिर निकलेगी. 20 मई को वो बेस कैम्प से निकली, 22 मई को ही ट्रैफिक जाम की स्थिति हुई थी जिसमें फस कर लोगों की मौत हुई. जैसे जैसे अमीषा चढ़ाई कर रही थी रास्ते में लोगों की लाशें मिल रही थी. अमीषा ने बताया एक मरा हुआ व्यक्ति तो रस्सी से लटका हुआ था जिसके ऊपर से उन्हें वो रास्ता पार करना था. ये सब चुनोतियाँ और कठिनाई के बाद भी हौसला नहीं टूटा.

और हौंसलों का फल भी मिला 23 मई को सुबह 8.20 पर अमीषा ने एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहरा दिया. और देश के साथ ही उत्तराखंड का भी नाम रौशन किया.

(संवाद 365/ मयंक आर्य)

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