यूपी का ये गांव नहीं मनाता रक्षा बंधन, मोहम्मद गौरी के हमले से जुड़ी है कहानी…

August 14, 2019 | samvaad365

गाजियाबाद: रक्षा बंधन के त्यौहार का इंतजार सभी को है.  लेकिन गाजियाबाद में एक सरना गांव ऐसा भी है जहां कभी मोहम्मद गोरी ने हमला किया था. उस हमले के बाद से इस गांव में कभी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया गया और भाइयों की कलाई सूनी रहती है.

लेकिन रक्षा बंधन के लिए देश भर में जहां तैयारियां चल रही हैं वहीं कई ऐसे भी हिस्से हैं जहां बहन रहते हुए भी कई भाइयों की कलाई हर सला सूनी रह जाती है। इस बात को सुनकर भले ही आपको आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यह सच है. गाजियाबाद इस गांव का नाम है सुराना यह गांव गाजियाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूरी पर मोदीनगर इलाके में है. बताया जाता है कि यह गांव हजारों साल पहले से बसा हुआ है और हजारों साल से ही इस गांव में रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता। लेकिन रक्षा बंधन नहीं मनान के पीछ भी बड़ी रोचक कहानी है.

मोहम्मद गोरी ने गांव पर किया था हमला

दरअसल मान्यता है कि 12वीं सदी में मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर कई बार आक्रमण किया. लेकिन जब वह इस गांव में आक्रमण करने आता था तो हर बार उसकी सेना अंधी हो जाती थी. उसे पस्त होकर वापस लौटना पड़ता था. इसके पीछे का कारण यह बताया जाता है कि इस गांव में एक देव रहते थे. वही पूरे गांव को सुरक्षित रखा करते थे. लेकिन रक्षाबंधन के त्योहार के दिन हिंदू धर्म में गंगा स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है. इसलिए रक्षाबंधन के दिन देव गंगा स्नान करने चले गए थे. इसकी सूचना गांव के ही एक मुखबिर ने मोहम्मद गोरी को दे दी कि आज देव गांव में नहीं है। इसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया और जितने भी लोग गांव के अंदर मौजूद थे सभी को हाथियों से कुचलवा दिया।

सिर्फ एक गर्भवती महिला बची थी जिंदा

क्योंकि वह अपने मायके अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधने गई हुई थी. तभी से इस पूरे गांव में रक्षाबंधन के त्यौहार को बेहद शुभ माना जाता है और यहां के भाइयों की कलाई सूनी रहती है. बताया जाता है कि यहां की बहु अपने मायके अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है. जबकि यहां की लड़कियां अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांधती हैं. बुजुर्ग लोगों का कहना है कि उस हमले के बाद गांव फिर से आबाद हुआ लेकिन लोगों ने रक्षा बंधन मनाना बंद कर दिया और आज भी अगर बाहर जाकर भी बस गए हैं तो भी रक्षाबंधन के त्योहार को नहीं मनाते हैं.

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संवाद365/नदीम अली

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