उत्तरकाशी: उत्तरकाशी जनपद अपने सौन्दर्य, परम्परागत सांस्कृतिक त्योहार व पहनावे के लिए जाना जाता है. यहां कई तरह के मेले और त्यौहार मनाए जाते हैं. लेकिन इन खुशियों के पर्व में अपनी ध्यानताओ यानी कि विवाहित बेटियों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया जाता है. इस दौरान बेटियों की काफी खातिर दारी की जाती है, और पर्व समाप्त होने के पश्चात दक्षिणा अन्न, मिठाई, अरसे, रोटाने देकर अगले वर्ष तक मंगलकामनाओं के साथ विदाई दी जाती है. यह त्योहार हर साल मनाया जाता है. अगर किसी की बेटी न हो तो उसके बच्चे को ध्यान्ता समझ कर वही सम्मान दिया जाता है जो एक बेटी को दिया जाता है.
ऐसे ही एक थोलू, उत्तरकाशी जनपद के भीतर सीमांत ब्लॉक भटवाड़ी के ग्राम मुखबा में मनाया जाता है. जिसका नाम है सेलकू यह हर साल 16-17 सितंबर को देवता की पूजाई व भेलू, रासो, तांदी लगा कर दो दिन तक मनाया जाता है. इस दिन बेटियां-दामाद व बच्चों के संग अपने श्रद्धा अनुसार ईस्ट देव सोमेष्वर के लिए चढ़ावा लाती है. इस बार भी मुखवा गांव में पौराणिक सेल्कु मेले का आयोजन किया जा रहा है. सेल्कु का मतलब होता है सोएगा कौन…. अर्थात गांव के सभी लोग रात भर जागते हैं. मंदिर प्रांगण में दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाएगा. दूर बुग्यालों के बीच से लाए गए देव पुष्प जैसे ब्रह्मकमल आदि पुष्पों से देव डोलियों को आसन और पूजा जाता है. मेले के दूसरे दिन आसन मुख्य आकर्षण होता है. इसमे जिस व्यक्ति पर समेस्वर देवता अवतरित होते हैं वो नंगे पांव धारदार फरसे के ऊपर काफी दूर तक चलके जाते हैं
इस त्योहार में ग्रामीणों द्वारा भैलो खेल भी खेला जाता है. भैलो चीड़ और देवदार की लकड़ियों के छिलकों से बनाए जाते हैं. सेल्कू त्योहार में भैलो खेलने की परंपरा काफी पुरानी है. भैलो खेलते समय स्थानीय ग्रामीण कई करतब दिखते हैं.अगर दूसरे नजरिया से देखे तो इस समय खेतो में कोई कार्य न होने के कारण और फसल आ जाती या आने वाली होती है.इसलिए भी इस मेले का आयोजन किया जाता है. यानी कि इस सेलकू मेले में परंपरा संस्कृति और भावनाओं का एक अनोखा मिलन होता है.
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संवाद365/मयंक आर्य