जिसे अपनी संस्कृति से प्यार हो और वह अपने हुनर से उसको संजोने में काम करता हो उसके सामने चाहे कितनी ही मुश्किले क्यो न आए लेकिन वह अपने काम को और उसके अंजाम को नहीं छोड़ता. इसी तरह की मिसाल पेश करते हैं पिथौरागढ़ के शमशाद… जी हां शमशाद जिनका उम्र अभी 28 वर्ष है. उन्होंने अपने जीवन अपनी चित्रकारी से कई सम्मान प्राप्त किए लेकिन उससे भी बढ़कर योगदान उन्होंने अपनी संस्कृति के संवंर्धन और प्रचार प्रसार में दिया है.
शमशाद एक उत्तराखंडी चित्रकार हैं. पिथौरागढ़ के निवासी हैं साल 1999 में माता जी का स्थानांतरण लखनऊ हो गया था तो वहीं बस गए लेकिन आज भी उत्तराखंड के प्रति अपने प्रेम को कम न कर पाए. शमशाद को उत्तराखण्डी लोककला व सांस्कृतिक के प्रति इतना लगाव है कि उन्होंने विलुप्त होती अपनी लोक कला से सभी को रूबरू करवाने का प्रयास शुरू कर दिया. जिसके बाद उन्होंने पौराणिक लोककला, धरोहर, वाद्य यंत्र, छोलिया नृत्य, ऐपण व चार धाम पवित्र स्थान की पेंटिंग को अपने हाथो से केनवास उकेरना शुरु किया.
उन्होंने लखनऊ में होने वाले पर्वतीय कार्यक्रम व उत्तरायणी महोत्सव में मुख्य अतिथियो को भेंट की जाने वाली बाज़ार से खरीदी स्मृति चिन्ह के स्थान पर उत्तराखण्ड की कला पेंटिंग को देने का विचार-विमर्श किया और बात बन गयी. जनवरी वर्ष 2019 उत्तरायणी महोत्सव के मुख्य अतिथि उस समय के गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भी छोलिया की पेंटिंग भेंट की गई. इसके अलावा भी कई हस्तियों को उन्होंने अपनी पेंटिंग के जरिए उत्तराखंड की संस्कृति से रूबरू करवाया.
महोत्सव के समापन अवसर पर उन्हें हिमालयन सम्मान से सम्मानित भी किया गया. साथ ही पिथौरागढ में होने वाला छोलिया महोत्सव में भी उन्हें हर साल सम्मानित किया जाता है. उनका कहना है कि वह अपने काम में हमेशा ही लगे रहेंगे शमशाद ने पर्यटन मंत्री से मिलने की इच्छा भी जताई है. शमशाद के जीवन में मुश्किल पल तब आया जब 2016 में रोड एक्सीडेंट होने से उनके एक पैर में तकलीफ हो गई. प्राइवेट नौकरी चली गयी. उसी वर्ष पिता व बड़े भाई की भी मृत्यु हो गई और तबसे वह अपनी माता के साथ रहते हैं और पेंटिंग से घर का थोड़ा बहुत खर्चा चल जाता है. लेकिन शमशाद आज नजीर बने हैं समाज के लिए कि कैसे अपनी लग्न से वह निरंतर उत्तराखंड को पेंटिंग के जरिए लोगों तक पहुंचा रहे हैं.
(संवाद 365/ब्यूरो)
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