जानिए आज ही के दिन छत्रपति शिवाजी ने शाइस्ता खां को कैसे दी थी मात

April 6, 2019 | samvaad365

हमारा देश वीर शासको और राजाओं की पृष्ठभूमि रहा है। इस धरती पर कई ऐसे महान शासक पैदा हुए हैं जिन्होंने अपनी योग्यता और कौशल के दम पर इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया है। ऐसे ही महान योद्धा और रणनीतिकार थे छत्रपति शिवाजी महाराज। वह शिवाजी महाराज ही थे जिन्होंने भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखीं थीं। शिवाजी ने कई सालों तक मुगलों के खिलाफ युद्ध किया। 1674 में महाराष्ट्र के रायगढ़ में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया था। तब से उन्हें छत्रपति की उपाधि प्रदान की गयी थीं।

शिवाजी महाराज अपनी वीरता और चतुराई के लिए जाने जाते थे। आज उनसे जुड़ी एक ऐसी ही घटना हम आपको बताते हैं। शिवाजी महाराज के किलों में पुणे का लाल महल काफी महत्त्वपूर्ण था। उनके बचपन का अधिकतर समय यहीं बीता। लेकिन अब उस पर औरंगजेब के मामा शाइस्ता खां का कब्जा था। शाइस्ता के एक लाख सैनिक महल के अंदर और बाहर तैनात थे। लेकिन शिवाजी ने भी संकटों से हार मानना कहां सीखा था। उन्होंने खुद इस अपमान का बदला लेने का फैसला किया। और 6 अप्रैल 1663 की मध्यरात्रि का समय इसके लिए चुना गया। इस दिन औरंगजेब के शासन की वर्षगांठ थी। इसी समय शिवाजी ने मैदान मारने का निश्चय किया। और योजना अनुसार तीन टोलियों में अपनी सेना के साथ शिवाजी द्वार के भीतर प्रवेश कर गये। जिसके बाद महल के पीछे से वह रसोईघर में प्रवेश कर गए। जहां सुबह के भोजन की तैयारियां चल रहीं थीं। और एक के बाद एक रसोइये को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद शाइस्ता खां के शयनकक्ष तक पहुंचने के लिए शिवाजी के साथियों ने एक एक कर दीवारें गिरानी शुरु की। जिससे महल में हड़कंप मच गया और एक नौकर ने इसकी सूचना शाइस्ता खां को दी। लेकिन जब तक शाइस्ता कुछ समझ पाता तब तक पूरा दल शयनकक्ष में प्रवेश कर गया। मौत के डर से शाइस्ता खां कांपने लगा। तभी शाइस्ता की एक बीवी ने समझदारी दिखाते हुए दीपक बुझा दिया। जिसका फायदा उठाकर शाइस्ता भाग खड़ा हुआ और उसने खिड़की से छलांग लगा दी। लेकिन तब तक शिवाजी की तलवार चल चुकी थी और शाइस्ता की तीन उंगलियां कट कर गिर गईं। अंधेरे के चलते शिवाजी को लगा कि शाइस्ता खां मारा गया। तो उन्होंने सब साथियों को लौटने का संकेत कर दिया।

इस हादसे के बाद शाइस्ता महल में रुकने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। उसने औरंगजेब को अपना हाल-ए-दिल बताया। तो औरंगजेब ने उसे सजा के तौर पर बंगाल भेज दिया। अगले दिन रामनवमी के मौके पर शिवाजी की मां जीजाबाई ने शिवाजी की इस कामयाबी को देखते हुए खुशी से उनका माथा चूम लिया।

संवाद365/ पुष्पा पुण्डीर

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