”सब अंधेरा उजियारे में… अंधी सारी आँख है… खस्ता सबकी हालत है…. और ठीक सारे हालात हैं…”
‘इन पंक्तियों का संकेत वर्तमान परिदृश्य की ओर है… संभवतः दुनिया के साथ कुछ ऐसा ही होता रहा !’
क्या 1930 की महामंदी से भी भयानक स्थिति आने वाले समय में होने वाली है…? क्या 2008 की वैश्विक महामंदी से भी बड़ा दौर दुनिया के सामने खड़ा है…? क्या कोरोना वायरस से मौत का आंकड़ा कई देशों में लाखों तक पहुंच सकता है…? और अगर यह होगा तो फिर इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा…?
दुनिया के कई देश इस वक्त एक सुर में कह रहे हैं कि इस भयानक दृष्य के लिए चीन जितना जिम्मेदार है, उतना ही जिम्मेदार WHO यानी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी है। जिस संकट काल में एक आम आदमी भी अपने हिस्से से 100 से 500 रूपए देकर भी देश का भला करने में लगा हो, इस योगदान को भी बड़ा योगदान माना जा रहा हो, जबकि उसके पास कोई बड़ी शक्ति नहीं है, तो उस वक्त में WHO जैसी संस्था के उपर प्रश्न खड़े होना लाजमी है. क्योंकि WHO तो बना ही इसलिए है कि महामारी के वक्त दुनिया को आगाह करे, उन्हें नेतृत्व प्रदान करे किंतु ये सब बातें गौंण हो चुकी नजर आती हैं.
अमेरिका ने जिस वैश्विक संस्था WHO की फंडिंग तक रोक दी है, उसके बारे में जरा थोड़ा समझिए पहले।विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना 72 साल पहले 7 अप्रैल 1948 को हुई थी, यह संयुक्त राष्ट्र संघ के अंदर काम करने वाली ही एक संस्था है, भारत भी तब से ही इसका सदस्य है, संस्था की जिम्मेदारी है पब्लिक हेल्थ के सेक्टर में काम करना, वैश्विक स्तर पर महामारी के समय में नेतृत्व प्रदान करना, ताकि दुनिया के अन्य देशों के लिए एक निर्देशक रहे और स्थितियों पर काबू पा लिया जाए। यह तो मोटा माटी बात थी, लेकिन कोविड-19 (COVID-19) के संदर्भ में ऐसा कहीं पर भी होता नहीं दिखा।
डाॅ टेडरोस एडनोम (DR Tedros Adhanom Ghebreyesus) इस वक्त WHO के डायरेक्टर जनरल हैं, यानी कि इस वैश्विक संस्था का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान हालत यह बताते हैं कि यह नेतृत्व कम चीन को फेवर ज्यादा कर रहे हैं. इसके पीछे भी विश्लेषक और जानकार कई कारण बताते हैं, इन बातों का बारीकी से विश्लेषण करें तो कई सवाल उठते हैं। अब जरा नजर डालते हैं जिस महामारी ने आज पूरी दुनिया को अपने कब्जे में लिया है उस बीमारी से लड़ने में कैसे इस वैश्विक संस्था के स्तर पर लापरवाही ही लापरवाही बरती गई. जिसमा खामियाजा आज पूरी दुनिया को भुगतना पड़ रहा है.
2002 और 2003 का वक्त जरा याद कीजिए उस दौर में सार्स (SARS) आउटब्रेक हुआ था, और वर्तमान समय में SARS CoV2 यानि नाॅवल कोरोना वायरस का आउटब्रेक हुआ है। लेकिन क्या तब भी डब्लूएचओ की भूमिका ऐसी ही रही…. जी नहीं उस वक्त डब्लूएचओ ने चीन की खूब आलोचना की थी, क्योंकि चीन का रवैया तब भी ऐसा ही था जैसा इस वक्त है, चीन ने तब भी कई जानकारियां छिपाई… कई लापरवाहियां दिखाई लेकिन उस वक्त डब्लूएचओ की डीजी थी डाॅ ग्रो हारलेम ब्रंटलैंड ( वो दो बार नाॅर्वे की प्रधानमंत्री रह चुकी थी, एक कुशल नेता थी इसीलिए उस वक्त चीन को लताड़ लगी, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तत्परता दिखाई चीन की आलोचना की यातायात प्रतिबंध लगाए थे, और यह हाल तक थे जब सार्स के मामले 8,098 थे करीब 800 लोगों ने ही जान गंवाई थी। उसके बाद से ही चीन के प्रति लोगों को आगाह किया गया था, यहां तक कहा गया था कि चीन ने दुनिया के स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं दिखा।
चीन ने दिसंबर 2019 में डब्लूएचओ को यह सूचना पहली बार दी थी, कि वुहान में नमोनिया जैसे केस आ रहे हैं, लेकिन यह नहीं कहा कि यह मानव से मानव में संक्रमण कर रहा है (Human-to Human Transmission) कई रिपोर्ट्स तो यह भी दावा करती हैं कि चीन ने ही यह बताते बताते काफी देर कर दी जबकि चीन में नवंबर से ही ऐसे मामले सामने आ रहे थे, उसके बाद भी डब्लूएचओ नहीं चेता और न ही उसने दुनिया को आगाह किया, जब वैश्विक स्तर का संगठन ही ऐसी लापरवाही करेगा तो भला दुनिया के देश कैसे इसके लिए तैयार रहते, नतीजा यूरोपियन यूनियन ने भरोसा किया और आज यूरोप के देशों के हाल दुनिया देख रही है। इसके अलावा ताइवान ने भी यह चेतावनी दी थी, दिसंबर 2019 में ही ताइवान ने यह दावा किया था कि चीन के वुहान में यह बीमारी मानव से मानव में संक्रमण कर रही है, लेकिन ताइवान को नजरअंदाज कर दिया गया।
14 जनवरी 2020 का ट्वीट डब्लूएचओ को विश्व के सामने कटघरे में खड़ा कर रहा है, इस ट्वीट में डब्लूएचओ कहता है कि यह मानव से मानव में संक्रमण नहीं है, इसलिए हमें घबराने की जरूरत नहीं है। इस ट्वीट में डब्लूएचओ यह भी कहता है कि चीन की रिसर्च के आधार पर यह कहा जा रहा है, लेकिन विश्व के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार संस्था वहां तब भी अपनी टीम नहीं भेजती चीन की ही कही रिपोर्ट को दुनिया के सामने रख देती है। यहां तक कि 24 जनवरी को जब वुहान लाॅकडाउन हो जाता है तब भी डब्लूएचओ यह कहता है कि हमे यातायात पर प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए, जबकि उस वक्त तक अमेरिका चीन से यातायात पर प्रतिबंध लगा चुका था, और विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा था कि डर फैलाने की जरूरत नहीं है।
हद तो तब हो गई जब डब्लूएचओ के डीजी डाॅ टेड्रोस वुहान जाते हैं और दौरा कर दुनिया के सामने चीन की ही तारीफ करते हैं, कहते हैं कि चीन ने दुनिया का वक्त बचाया है, और बेहतर तरीके से काम किया है। लेकिन दुनिया का वक्त कितना बचा ये हम आज समझ सकते हैं। वक्त रहते डब्लूएचओ ने कोविड 19 को महामारी भी घोषित नहीं किया 11 मार्च को इसे महामारी घोषित किया गया, जबकि 24 जनवरी से 30 जनवरी तक चीनी न्यू ईयर आता है और तब तक लाखों लोग इस वायरस को वुहान से लेकर दुनिया के अलग अलग देशों की ओर निकल चुके थे। फरवरी के बीच में डब्लूएचओ की टीम चीन जाती है लेकिन रिपोर्ट चीन की ही दिखाई जाती है कारण यह कि डब्लूएचओ चीन और शि जिनपिंग को नाराज नहीं करना चाहता।
दरअसल डाॅ टेड्रोस इथियोपिया से आते हैं वो वहां पर स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं, उन्हें प्रमोट करने के पीछे चीन ही रहा था, चीन लगातार वैश्विक संस्थाओं में अपनी दखल हर जगह दे रहा है, इथियोपिया के साथ भी चीन के संबंध अच्छे हैं… निवेश अच्छा है… लिहाजा चीन को नाराज करना डाॅ टेड्रोस ने उचित नहीं समझा होगा। इसके पीछे एक कारण यह भी निकला है कि चीन के साथ इथियोपिया का हेल्थ सिल्क रोड़ का MoU भी है, इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्लूएचओ की फंडिंग यह कहकर रोक दी थी कि फंड WHO को हम करते हैं और फेवर चीन को किया जा रहा है। हालांकि साल 2014 के बाद से चीन ने डब्लूएचओ दी जाने वाली अपनी फंडिंग 52 प्रतिशत तक बढ़ा दी थी। कोरोना सिर्फ आर्थिक रूप से ही दुनिया के सामने संकट नहीं है बल्कि राजनीतिक रूप से भी काफी उथल पुथल दुनिया की बड़ी शक्तियों के बीच हो तो भी आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
दुनियाभर में जानकार और विश्लेषक यह मानते हैं कि कोविड 19 का ये संकट चीन की लापरवाही और उसपर डब्लूएचओ की दूसरी लापरवाही का नतीजा है, हर वक्त डब्लूएचओ की तरफ से देरी की गई दुनिया को आगाह नहीं किया गया, नतीजा आज दुनियाभर में 22 लाख से भी ज्यादा मामलों और डेढ़ लाख मौत हो चुकी हैं.
इस ग्राफ को देखिए और समझिए 15 फरवरी तक दुनिया भर में कोरोना के मामले 69 हजार के करीब थे, उसी वक्त अगर डब्लूएचओ इसे महामारी घोषित कर देता तो जाहिर सी बात है कि दुनिया भी इसके प्रति आगाह हो जाती, 5 फरवरी तक ही दुनिया में इससे 1669 मौतें हुई थी, लेकिन तब डब्लूएचओ चीन की तारीफ कर रहा था, निश्चित तौर पर एक वैश्विक स्तर की संस्था से कम से कम इस तरह की उम्मीद नहीं की जाती है, और वो भी तब जब लगभग हर देश इसका दंश झेल रहा है और सदी के सबसे बड़े आर्थिक मंदन की ओर गतिमान है।
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