चमोली: न तो पुल न ही सड़क, ये सफर खतरनाक है सरकार !

July 23, 2020 | samvaad365

चमोली: उत्तराखंड में सरकार चाहे बीजेपी की रही हो या फिर कांग्रेस की पहाड़ के विकास की रट सभी की जुबां पर रहती है। वादा किया जाता है कि जो सुविधाएं मैदान में हैं वो सुविधाएं पहाड़ में भी होंगी, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। मुश्किलें तब और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं जब बारिश होती है। तस्वीरें देखिए और अनुमान लगाईए। तस्वीरें हैं चमोली जिले के निजमुला घाटी की। जी जनाब यहां पर ऐसे ही जीवन जिया जाता है। चलने के लिए न बत्ती वाली इनोवा दिखती है न ही कोई बस ये सब भी सुहाने सपने हैं जनाब यहां तो सड़क और पुल तक ही नहीं है। सफर कितना खतरनाक होगा ये शब्दों में कहने की जरूरत नहीं तस्वीरें खुद ही बता रही हैं। पाणा इराणी झिंझि गांव के बाशिंदों को  8 से 10 किमी पैदल आना पड़ रहा है, लेकिन बरसात के इस मौसम में जहां नदियाँ उफान पर हैं तो वहीं सड़क मर्ग पर पहाड़ों से गिरते पत्थर लोगों का रास्ता रोक रहे हैं।

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वहीं दुर्मी, पगना, गौना धारकुमाला के लोगों को पैदल ही कभी कभार विरही तक 50 से 60 किमी आना पड़ता है. बता दें कि प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत निजमुला, ईरानी मोटर मार्ग पर बना ये पुल गोना गांव के पास भेगड़ा नामक स्थान पर 18 मीटर का गाडर पुल था, जो की 16 जुलाई 2018  को टूट गया तब से ही लोग इस परेशानी से जूझ रहे हैं लेकिन इनकी परेशानी की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा। पुल टूटे दो साल हो गए विकास की बातें आसमान को छू गई लेकिन दूरस्थ क्षेत्र के इन लोगों के लिए न तो सड़क पहुंच पाई न ही पुल सवाल ये कि कौन सुने और कैसे सुने।

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संवाद365/पुष्कर नेगी

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