सरकार का बड़ा कदम ‘रणनीतिक विनिवेश’ और ‘अर्थव्यवस्था’

November 21, 2019 | samvaad365

पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था में आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि देश मंदी का सामना कर रहा है. कई सेक्टरों को जबर्दस्त नुकसान हुआ है. चर्चा इस बात को लेकर भी है कि अर्थव्यवस्था में यह गिरावट चक्रीय गिरावट है या फिर संरचनात्मक. एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में भारत उभर रहा है यह बात आपने भी जरूर कुछ साल पहले सुनी होगी. किंतु वर्तमान परिदृश्य में आंकड़े भी इस बात की गवाही नहीं दे रहे हैं. इस लेख में हम मंदी की पृष्ठभूमि के साथ सरकार के द्वरा किए गए रणनीतिक विनिवेश (Strategic disinvestment) को समझने की कोशिश करेंगे.

अर्थव्यवस्था में मंदी से जुड़े आंकड़े

Central Statistics Office (CSO) ने वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही के आंकड़े जारी किए थे जिसमें GDP केवल 5 प्रतिशत ही रही. यह वित्त वर्ष 2013-14 की चौथी तिमाही के बाद न्यूनतम थी उस तिमाही में GDP 4.6 प्रतिशत थी. इसमें महत्वपूर्ण बात एक यह भी रही कि कृषि क्षेत्र की वृद्धि केवल 2 प्रतिशत ही थी तो वहीं विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 0.6 प्रतिशत थी. यह सिर्फ GDP से जुड़े आंकड़े हैं इसके अलावा बेरोजगारी दर सेंटर फाॅर मानिटरिंग इंडियन इकाॅनमी (CMIC) के अनुसार सितंबर 2019 में 7.4 प्रतिशत रही.

इस मंदी के कारण भी कई रहे हैं क्योंकि मंदी या फिर अर्थव्यवस्था में गिरावट का एक कारण नहीं होता. ऐसा भी नहीं है कि सरकार इससे उभरने के लिए कुछ नहीं कर रही है. सरकार द्वारा इसके लिए कई कदम भी हाल के दिनों में उठाए गए हैं. जिसमें काॅरपोरेट टैक्स की दर 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत की गई. सार्वजनकि क्षेत्र के 10 बैंकों का विलय कर चार बड़े बैंक बनाए गए. इत्यादि. सरकार के सामने अब एक मुख्य चुनौती यह है कि वह राकोषीय घाटे को कम कैसे करे साथ ही अर्थव्यवस्था के सामने तमाम संकंटों को देखते हुए अब केंद्र सरकार ने रणनीतिक विनिवेश (Strategic disinvestment)  को मंजूरी दी है, यह सरकार का एक बड़ा कदम है.

क्या है विनिवेश और रणनीतिक विनिवेश

सार्वजनकि क्षेत्र (PsU) के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी को बेचने की प्रक्रिया विनिवेश (disinvestment) कहलाती है. सरकार अपने हिस्से के शेयर्स को निजी इकाई को ट्रांसफर कर देगी. लेकिन उस उपक्रम पर नियंत्रण सरकार का ही रहेगा यह विनिवेश (disinvestment) है.  किंतु यदि सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाई को शेयर्स के साथ प्रबंधन नियंत्रण भी सौंप दिया जाए तो वह रणनीतिक विनिवेश (Strategic disinvestment) या बिक्री कहलाएगा. एक प्रकार से रणनीतिक विनिवेश को आप निजीकरण भी कह सकते हैं.

सरकार ने क्या किया अब वह समझिए

केंद्र सरकार ने पांच कंपनियों के साथ विनिवेश की प्रक्रिया को शुरू कर दिया है, भारत पेट्रोलियम काॅरपोरेशन (BPCL) शिपिंग काॅरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (SCI) कंटेनर काॅरपोरेशन ऑफ़ इंडिया कोनकोर, टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट काॅरपोरेशन (THDC) नाॅर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर काॅरपोरेशन (नीपको) इन पांच उपक्रमों के साथ पहले चरण में बिक्री की शुरूआत की गई है. इनमें से THDC और नीपको पर नियंत्रण NTPC को दिया जाएगा जबकि पहली तीन कंपनियों को सरकार शेयर्स के साथ नियंत्रण और प्रबंधन भी निजी हाथों में सौंपेगी. अर्थात इनका पूर्णतः निजीकरण किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली अर्थिक मामलों की मंत्रीमंडलीय समिति (CCEA) ने इसपर मुहर लगा दी है.

इस फैसले से सरकार को लाभ मिलेगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि कई उपक्रमों में हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम होगी लेकिन संबंधित कंपनियों पर नियंत्रण सरकार का रहेगा. निजीकरण के प्रस्ताव से थोड़ा भिन्न है. ज्ञात हो कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी विनिवेश किया गया था लेकिन उसके बाद यूपीए के 10 वर्षों के कार्यकाल में यह मामला सुप्त रहा.

रणनीतिक विनिवेश क्यों

जानकारों के मुताबिक रणनीतिक विनिवेश से सरकार का उद्देश्य लाभ अर्जित करना है. चालू वित्त वर्ष में सरकार ने विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रूपए जुटाने का लक्ष्य रखा है. 31 मार्च 2020 को खत्म होने वाले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को GDP के 3.3 प्रतिशत तक की सीमा में रखने के लिए भी यह महत्वपूर्ण है. रणनीतिक विनिवेश से होने वाली आय को सरकार आवश्यक अवसंरचनाओं के निर्माण में प्रयोग कर सकती है. इससे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रतिस्पर्धात्मक रूप से सक्षम बनाते समय ऋण कमी करने में भी सहायता मिलेगी. साथ ही वर्तमान समय में अर्थव्यवस्था के सामने तमाम तरह की चुनौतियों को देखते हुए भी सरकार यह कदम उठाने जा रही है.

क्या है स्थिति

सरकार ने विनिवेश से होने वाली आय का लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष के लिए 1.05 लाख करोड़ रहा है. लेकिन अभी तक सरकार को इससे महज 17,364.26 करोड़ रूपए ही अर्जित हो पाए. भारत पेट्रोलियम BPCL में सरकार की हिस्सेदारी 53.29 प्रतिशत की है, इसकी बिक्री से सरकार को करीब 60,037 करोड़ का लाभ होने की उम्मीद है. साथ ही काॅनकोर और SCI की से सरकार को कुल 20,817 करोड़ रूपए के लाभ की उम्मीद है. इन कंपनियों में विदेश की कई बड़ी कंपनियां भी दिलचस्पी रखती हैं. सरकार SCI में अपनी पूरी 63.75 प्रतिशत की हिस्सेदारी को बेचेगी तो वहीं काॅनकोर में 54.8 प्रतिशत में से 30.8 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची जाएगी.

इसी बैठक में कैबिनेट ने टेलिकॉम  सेक्टर को भी बड़ी राहत दी है. संकट से जूझ रहे टेलीकाॅम सेक्टर को स्पेक्ट्रम भुगतान के लिए दो साल दिए गए हैं. अब टेलीकाॅम कंपनियों को 2020-21 और 2021-22 दो साल के लिए स्पेक्ट्रम भुगतान से छूट दे दी गर्ठ है. इस फैसले से सबसे बड़ी राहत वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल रिलायंस जियो को मिलेगी.

रणनीतिक विनिवेश के बाद उम्मीद यह भी जतानी चाहिए कि अर्थव्यवस्था अपनी पटरी पर लौटने लगे. सरकार का यह भी उद्देश्य है कि इसी चालू वित्तीय वर्ष में यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाए. अब भविष्य में इसके नतीजों पर भी सभी की नजर रहेगी.

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