जानिए उत्तराखंड के कुमाऊं में चैत्र माह की भिटौली क्यों है खास..

March 23, 2019 | samvaad365

न बासा घुघुती चैत की.. याद ऐ जांछि मिकें मैत की…

अपनी लोककला और परम्पराओं के लिए जाना जाने वाला उत्तराखंड आज भी अपनी संस्कृति को संजोए हुए है। कुमाऊं में चैत्र मास में निभाई जाने वाली भिटौली की रस्म इसका ही जीता जागता उदाहरण है। दरअसल हर साल चैत्र के महीने में मायके पक्ष से पिता या भाई भिटौली लेकर अपनी बेटी या बहन के ससुराल जाते हैं। पहाड़ी इलाकों के साथ ही कई शहरी क्षेत्रों में आज भी भिटौली की रस्म निभाई जाती है। सदियों से चले आ रही इस परंपरा की महिलाएं बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार करती हैं। पहाड़ की महिलाओं की भावनाओं और संवेदनाओं को बयां करती यह परंपरा वक्त के साथ धूमिल ज़रूर होने लगी थी। लेकिन नई पीढ़ी में अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति लगाव ने इसे फिर से पुनर्स्थापित कर दिया है। देहरादून की मयूरी नगरकोटी बताती हैं कि उनका मायका भी देहरादून में ही है लेकिन शादी के बाद से ही हर साल चैत्र के महीने में मायके वाले उन्हें पारंपरिक तौर पर भिटौली देने आते हैं। इससे कहीं न कहीं युवा अपनी संस्कृति से जुड़े तो रहते ही हैं साथ ही इसे आगे आने वाली पीढ़ी तक भी पहुंचाते हैं।

बता दें कि भिटौली का शाब्दिक अर्थ है भेंट यानि कि मुलाकात। उत्तराखंड में पुराने समय में संसाधनों की कमी और व्यस्त जीवन शैली के कारण विवाहित महिला का कई सालों तक मायके जाना संभव नहीं हो पाता था। ऐसे में चैत्र मास की भिटौली के माध्यम से भाई अपनी बहने के ससुराल जाकर उससे मिल पाता था। इस दौरान भाई अपने कई पकवानों और प्यार के साथ  बहन से मिलने पहुंचता था। जिसका बहन को भी बड़ी ही बेसब्री से इंतजार रहता था। इस दौरान बहन के ससुसाल में भी उत्सव का माहौल बन जाता था, मायके से भेजे गए पकवानों को गांवभर में बांट कर खुशी का इज़हार किया जाता था। आज इन परंपराओं को निभाने का तरीका ज़रूर बदल गया है। लेकिन आज भी उत्तराखंड के लोग अपनी अनमोल संस्कृति और परंपराओं को भूले नहीं हैं। बता दें कि चैत्र के महीने का उत्तराखंड में विशेष महत्त्व है। चैत्र माह के पहले दिन से ही फूलदेई का त्योहार भी शुरु होता है। माना जाता है कि चैत्र माह के आगमन के साथ ही जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है।

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संवाद365 / पुष्पा पुण्डीर

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