सुनिए मेजर ध्यानचंद के किस्से, जब हिटलर के सामने ध्यानचंद ने जर्मनी को हराया

August 29, 2020 | samvaad365

हाॅकी के जादूगर के नाम से मशहूर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रीय खेल पुरस्कार भी दिए जाते हैं। मेजर ध्यानचंद हाॅकी के वो खिलाड़ी थे जिन्हें हाॅकी का जादूगर कहा जाता था। उनके खेल की वजह से ही भारत का राष्ट्रीय खेल हाॅकी बना। अनुमान लगाईए आज के दौर में 6 से 7 गोल करने में टीमों के पसीने छूट जाते हैं। लेकिन ध्यानचंद के जमाने में भारत ने यूएसए को 24-1 के रिकाॅर्ड अंतर से हराया था, 8 से 10 गोल भारतीय टीम के लिए औसत ही थे। खेल ऐसा की सामने वाली टीम एक भी गोल नहीं कर पाती थी। मेजर ध्यानचंद का जन्म  29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था। 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुए और वहीं से हाॅकी का करियर शुरू हो गया। पहले ही दौरे पर न्यूजीलैंड में ध्यानचंद के खेल ने दिखा दिया था कि ये कोई साधारण खिलाड़ी नहीं है। उस दौरे पर टीम ने 18 में से 15 मैच जीते थे।

मेजर ध्यानचंद ने भारतीय हाॅकी को तीन बार 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में, 1932 के लाॅस एंजेलिस  और 1936 के बर्लिन ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलवाया था। मेजर ध्यानचंद के जीवन में यूं तो कई किस्से थे लेकिन बर्लिन ओलंपिक के फाइनल का किस्सा हर कोई जानना चाहता है। ये वो ओलंपिक था जब हिटलर खुद मैच देख रहा था और हिटलर की टीम भारत क हाथों हार रही थी। 15 अगस्त 1936 को बर्लिन ओलंपिक के फाइनल हाॅकी मैच में जर्मन तानाशाह हिटलर खुद मौजूद था। पहले हाफ में भारतीय टीम ने सिर्फ उक गोल दागा लेकिन दूसरे हाफ में भारत ने 7 और गोल दागे मेजर ध्यानचंद्र के खेल का हर कोई मुरीद हो रहा था। जर्मन ओलंपिक के ही शुरूआती प्रैक्टिस मैच में भारत को इसी जर्मन की टीम ने 4-1 से हराया था जिसका बदला फाइनल में गोल्ड मेडल जीतकर भारत ने पूरा कर दिया। कहा जाता है कि इस हार के बाद जर्मन तानाशाह हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को बुलाया और जर्मनी की टीम से खेलने के साथ ही उनकी सेना में उच्च पद देने का प्रलोभन भी दिया था लेकिन मेजर ध्यानचंद ने हिटलर के इस ऑफर को नकार दिया।

मेजर ध्यानचंद के खेल के बारे में कहा जाता है कि लोगों को उनकी हाॅकी स्टिक में चुंबक होने का शक था जिसके बाद हाॅलैंड के साथ एक मैच में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई। जापान के एक मैच में उनकी स्टिक पर गोंद लगे होने की बात भी कही गई। आज जब ओलंपिक में भारत कोई एक मेडल मिलता है तो हमारी खुशी कई गुना बढ़ जाती है लेकिन उस वक्त तीन तीन गोल्ड मेडल जितवाने वाले ध्यानचंद के जीवन का आखिरी पड़ाव कुछ खास नहीं रहा। पैंसों की तंगी से उनके कैंसर का आखिरी इलाज भी किसी अस्पताल के जनरल वार्ड में ही चल रहा था। और आखिरकार 3 दिसंबर 1979 में हाॅके के जादूगर का निधन हो गया।

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संवाद365/डेस्क

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