पलायन रोकने और स्थानीय संसाधनों के विषय पर उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों ने की ऑनलाइन चर्चा 

May 28, 2020 | samvaad365

देहरादून: कोरोना महामारी के कारण विभिन्न राज्यों से बडी संख्या में प्रवासी उत्तराखण्डवासी वापस अपने गाँव आ रहे है। राज्य सरकार द्वारा प्रवासी लोगो के लिए योजनाएं तैयार की जा रही है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ड्रीम्स संस्था द्वारा एक अभिनव प्रयोग किया गया। प्रवासी लोग अपने गाँव में रहकर ही रोजगार को अपनाए और इस रिवर्स पलायन के बाद पुनः पलायन को कैसे रोका जायए इसके लिये ड्रीम्स संस्था द्वारा समाज के विभिन्न बुद्विजीवियों एवं विषय विशेषज्ञों के साथ ऑन लाइन वीडियो से चर्चा की गई। चर्चा का विषय ष्ष्कोरोना काल में रिवर्स पलायन के पश्चात पुनः पलायन रोकने हेतु कैसे हो स्थानीय संसाधनों का विकास रखा गया था।
संस्था के महासचिव दीपक नौटियाल ने बताया कि संस्था का यह प्रयास सफल रहाए पिछ्ले एक सप्ताह में हर रोज एक वीडियो जारी किया गया। जिसमें समाज के विभिन्न बुद्विजीवियों एवं विषय विशेषज्ञों के ऑन लाइन वीडियो भेजकर अपने विचार व्यक्त किये गये।
1वें उद्बोधन में प्रथम उद्बोधन अनूप नौटियालष् ने उत्तराखंड में पलायन के असर के बारे में बताते हुए विभिन्न प्रकार के पलायन के आंकड़े दिये। उन्होंने कहा कि पलायन को रोकने में सरकारें नाकाम रही है। वर्तमान सरकार ने पलायन आयोग का गठन किया। श्री नौटियाल जी ने पलायन आयोग की रिपोर्ट के आंकड़े अपने विचारों के माध्यम से रखेए इस कोरोना अवधि में उन्होंने 10 जिलों में अब तक 69360 लोगों के वापस आने की बात कहीं थी। उन्होंने लौटे हुए लोगों के प्रति चिंता जता कर सरकार से जल्दी योजना बनाने और लागु करने पर जोर दिया। ण्
2वें उद्बोधन में दूसरे सम्बोधन में शिक्षक संघ के कोषाध्यक्ष सतीश घिल्डियाल ने भी सरकार से मांग की कि योजनाएं शार्ट टर्म हों और जल्दी से लागु होंए उन्होंने कहा कि लौटे लोगों को योजनाओं की जानकारी एवं उनके लायक कार्य के प्रति उन्हें जानकारी एवं मार्ग दर्शन जल्दी से एवं गंभीरता से देने की आवश्य्कता है। उन्हें किसानों को तकनिकी ज्ञान देने एवं खेतोँ की चैकबंदी करने की दिशा में काम करने को कहा । श्री घिल्डियाल ने कहा कि लौटा व्यक्ति स्किलड हो सकता हैए तो यहां पर सर्विस सेक्टर को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने इंडस्ट्रियल हैम्प ;भाँगद्ध की खेती करवाने पर जोर दिया जो कि बहुत अधिक महंगी बिकती है और जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते। इसके अलावा दवाई हेतु उपयोगी कंडाली और बिजली बनाने हेतु पहले से ही प्रचुर मात्रा में पाई जाने चीड़ का सदुपयोग करवाने पर जोर दिया।
3वें उद्बोधन में अपने तीसरे उद्बोधन में विजय प्रसाद मैठाणी ने भी पलायन के आंकड़ों को रखते हुए पर्यावरण की बहुत सी सभावनाओं जरुरत बताया। उन्होंने अलग अलग महत्वपूर्ण स्थानों को व्यापारिक केंद्र बनाने के सुझाव दिये। जलश्रोतों के सयोजन की विस्तृत योजना बनाते हुए विद्युत परियोजनाओं पर कार्य करने की बात कही की ओर ध्यान आकर्षित किया और होम स्टेजों को विकसित करने के लिए अच्छी योजनाओं की।
4वें उद्बोधन में अपने चैथे सम्बोधन में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता संजय शर्मा ने अपने अपने गावों में लौटे लोगों के लिए सरकार से ईमानदारी से काम करने पर जोर देते हुए नये छोटे बड़े कारखाने लगाने की बात की ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।
5वें उद्बोधन में हरियाली फाउंडेशन के उपाध्यक्ष राम प्रसाद भट्ट ने सेवानिवृत कर्मचारियों के अनुभवों को सम्मिलित कर लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करने की बात की। उन्होंने सरकार को लोगों के लिए बहुत कम व्याज दर पर आसान किस्तों में पूर्ण किए जाने वाले लोन उपलब्ध कराने की सलाह दी।
6वें उद्बोधन में चमोली जिले के नेहरू युवा केंद्र के समन्वयक डॉ योगेश धस्माना के अनुसार उत्तराखंड के पलायन और अन्य प्रदेशों के पलायन में बहुत अंतर है। हमारे यहां स्किल्ड लोगों की अधिकता है तो उनके लिए बहुत जल्दी उसी तरह की योजना बनाने की आवश्यकता है। एक ढांचागत नीति के तहत लोकल क्षेत्र की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए काम करने वालों के लिए सब्सिडी के बजाय वाह्य सपोर्ट की आवश्यकता है। हमें अपना ट्रांसपोर्ट सिस्टम एवं सूचना तंत्र को विशेषकर पहाड़ों के लिए मजबूत करना होगाए ताकि हर तरह के कार्यों में तकनीकीय स्वरुप आ सके और रोजगार की संभावना बढे। उन्होंने शिक्षा के स्वरुप को नवोदय विद्यालयों की तरज पर बदलने की जरुरत पर जोर दिया एवं कृषि को तकनीकीय स्वरुप देने की बात कही।
7वें उद्बोधन में एच पी ममगाईं ने पशुपालन एवं हर्बल विकास पर भी प्रबल सभावनाएं बताई।
8वें उद्बोधन में शिक्षक अमित कपरुवाण ने इस गोष्ठी के आठवें सम्बोधन में लोकल श्रोतों को तकनीकीय स्वरुप देकर विकसित करने एवं पुनः हिमालयी संसाधनों के विकसित करने के साथ साथ प्रचुरता में उत्पादन पर जोर दियाए उनके अनुसार अगर प्रचुरता होगी तो इस तकनीकीय युग में मार्केट स्वतः ही विकसित हो जायेगा।
9वें उद्बोधन में फिल्म निर्माता एवं निर्देशक प्रदीप भंडारी ने इसे एक प्रकार से पुर्नस्थापन नाम दिया और इसे दो श्रेणियों में बाँटा पहली वो जब आज लौटे व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं, जिसे स्थापित करने हेतु सरकारी मदद या अन्य क्षेत्रीय समर्थन की आवश्यकता है और एक दीर्घकालीन जब वह स्वयं में निर्भर होने की स्तिथि में होगा। दोनों परिस्थियों के लिए सरकार को गंभीर योजनाएं बनाने की आवश्यकता है।
10वें उद्बोधन में हाई कोर्ट के अधिवक्ता भागवत सिंह नेगी ने 10वें उद्बोधन में पलायन को एक प्राकृतिकए सामयिक एवं प्रस्थितिक प्रक्रिया बताया जो होती रहेगी मगर हमारे क्षेत्रीय संसाधनों का विकास इस तरह से हो कि यही प्रक्रिया विपरीत भी होने लगे अथार्त अपनी रोजी का साधन व्यक्ति पहाड़ों पर भी ढूंढे। कृषिए पशुपालन पर्यटन पर्यावरण पर अभी तक कोई भी सरकार गंभीरता से काम नहीं कर पाई है जो अब तनिकीय स्वरुप देकर और भी आसान हो सकता है बस जरुरत सोच और नीयत की।
11वें उद्बोधन में यूथ आइकन के संस्थापक समाजसेवी शशिभूषण मैठाणी ने अपने वीडियो सम्बोधन में सभी लोगों से अपना परिचय सूचना को अपने गावों से जोड़े रखने की और गावों को पूर्ण रूप से न छोड़ने की अपील की। उन्होंने भी सरकार से क्षेत्रीय संसाधनों को विकसित करने हेतु बन रही योजनाओं की सम्पूर्ण एवं सही जानकारी सभी लोगों तक पहुंचाने का अनुरोध किया।
बारहवें उद्बोधन में राउण्मा पालाकुराली जखोली रूद्रप्रयाग के विज्ञान के अध्यापक अश्विनी गौड़ ने लोकल उत्पाद की अधिकता एवं उनका ब्रांड बनाकर तकनीकी ढंग देकर उसका वृहद व्यापार करने का सुझाव दिया.
इस श्रृंखला का संयोजन संस्था के उपाध्यक्ष राकेश मैठाणी एवं श्रेया नौटियाल द्वारा बारी.बारी से किया जा रहा है। अभी यह उद्बोधन श्रृंखला जारी है अभी इसमें कुल 20 से 25 उद्बोधनों का संकलन कर उन सभी की एक सूक्ष्म डॉक्यूमेंट्री का निर्माण कर सुझाव स्वरूप राज्य सरकार को भेंट की जाएगी।

अमित गुसांई/संवाद365

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