फूलों की देवी ‘घोघा माता’ की पूजा के साथ सम्पन्न हुआ उत्तराखंडी लोकपर्व ‘फूलदेई’

April 15, 2019 | samvaad365

उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई शनिवार को श्रीनगर गढ़वाल के नागेश्वर मंदिर में महंत नागेश्वर पूज्य नितिन पुरी द्वारा घोघा माता की पूजा की गई। फूलों की देवी घोघा माता की पूजा बच्चों को मिठाई और दक्षिणा देकर सम्पन्न की गई। इस मौके पर आयोजक संयोजक अनुप बहुगुणा, महेश गिरि के साथ ही महंत नागेश्वर नितिन पुरी जी, गिरिश पैन्यूली, जितेन्द्र रावत, जगमोहन कठैत, प्रदीप अडथ्वाल, नरेश खण्डूरी, वीरेंद्र रतूड़ी भी मौजूद रहे। बता दें कि श्रीनगर में यह आयोजन चैत्र मास के पहले दिन की सुबह से ही मुख्य कस्बों में फूलदेई की यात्रा से आरम्भ हुआ। इस यात्रा में बच्चे, बूढ़े, जवान, रंगकर्मी, साहित्य कर्मियों और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने प्रतिभाग किया। आयोजन के पहले दिन जाने माने लेखक और साहित्यकार अरूण खुगशाल, पत्रकार श्रीमती गंगा असनोड़ा थपलियाल के साथ ही रंगकर्मी गणेश बलूनी ने बच्चों से रूबरू होकर उन्हें इस त्योहार के विषय में जानकारी दी।

क्या है फूलदेई पर्व

उत्तराखंड में चैत्र माह की संक्रांति से मनाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकपर्व फूलदेई पर्व  को फूल संक्रांति भी कहा जाता है। इस त्योहार का सीधा संबंध प्रकृति से है। इस माह की शुरूआत से ही चारों ओर छाई हरियाली के साथ ही पहाड़ी जंगली फूल फ्योंलि और बुरांश प्रकृति की खूबसूरती को और भी बढ़ा देते हैं। देवभूमि में चैत्र मास की संक्रांति यानि पहले दिन से ही फूलों का त्योहार फूलदेई मनाया जाता है, जो कि बसन्त ऋतु के स्वागत का प्रतीक है। चैत्र के महीने में उत्तराखंड के जंगलो में कई प्रकार के मनमोहक फूल खिलते हैं। फूल पर्व में नन्हे-मुन्ने बच्चे सुबह ही घर-घर जाकर देहली पर रंग बिरंगे फूलों को चढ़ाते हुए घर की खुशहाली और सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं। जानकारों के अनुसार यह पर्व पर्वतीय परंपरा में बेटियों की पूजा, समृद्धि का प्रतीक तो है ही साथ ही रोग निवारक औषधि संरक्षण दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। फूलदेई पर्व के मौके पर एक खास तरह का व्यंजन बनाया जाता है जिसे सयेई कहा जाता है। जहां कुछ इलाकों में फूलों का यह पर्व पूरे चैत्र मास तक चलता है, तो वहीं कुछ स्थानों में यह आठ दिनों तक मनाया जाता है। बच्चे फ्योंलि, बुरांश और दूसरे स्थानीय रंग बिरंगे जंगली फूलों को चुनकर लाते हैं और उनसे सजी फूलकंडी लेकर घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं। भेंट के तौर पर लोग इन बच्चों की थाली में पैसे, चावल, गुड़ आदि चढ़ाते हैं। बता दें कि घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है। फूलों के इस देवी को बच्चे ही पूजते हैं। माह के अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की बड़ी पूजा करते हैं और इस अवधि के दौरान इकठ्ठे हुए चावल, दाल और भेंट राशि से सामूहिक भोज पकाया जाता है। उत्तराखंड में फूलदेई के साथ ही कई लोकपर्व मनाए जाते हैं। जिन में घी त्योहार, बसंत पंचमी, घुघुतिया और मकर संक्रांति पर्व आदि प्रमुख हैं।

 संवाद365 / पुष्पा पुण्डीर

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