इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज रहेगा वृक्षमित्र ,पद्मविभूषित सुंदरलाल बहुगुणा का नाम

May 21, 2021 | samvaad365

क्या है जंगल के उपकार
मिट्टी पानी और बयार
मिट्टी पानी और बयार
जिंदा रहने के आधार …………इन पंक्तियों के रचयिता  सुंदरलाल बहुगुणा अब हमारे बीच नहीं रहे । उनके जाने से बड़ी क्षति उत्तराखंड के हुई है । 9 जनवरी, 1927 को जन्में सुन्दरलाल बहुगुणा का सफर 21 मई 2021 तक रहा, लेकिन इन 94 सालों के सफर में सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना जीवन प्रकृति की सेवा में सर्मपति कर दिया । पर्यावरण प्रेमी,वृक्ष मित्र ,चिपको आंदोलन के प्रेणता सुंदरलाल बहुगुणा मूल रूप से टिहरी गढ़वाल के रहने वाले हैं ।इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव से ही की और आगे की शिक्षा के लिए यह लाहौर चले गए जहां इन्होंने कला से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ। उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला। बाद में उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। 1960 के दशक में पर्यावरण को प्रति लगाव और पेड़ो को बचाने की जिद ने इन्हें पर्यावरण प्रेमी बना दिया । और जंगल को बचाने ,पेड़ो को न काटने के लिए इन्होनें कई काम किए ।

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मशहूर और ‘चिपको आन्दोलन’ के सुंदरलाल बहुगुणा प्रमुख नेता रहे । चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। वह तब महज 13 साल के थे जब टिहरी में श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए। अपनी यात्रा के दौरान, सुंदर लाल बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के लाभों को बारीकी से समझा। उन्होंने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधने और पानी के संरक्षण की क्षमता होती है।अंग्रेजों के लिए जंगल केवल लकड़ी, लीसा और व्यापार का एक स्रोत थे। उनका मानना था कि वनों का सबसे पहले उपयोग आस-पास रहने वाले लोगों के लिए होना चाहिए ताकि उन्हें भोजन, घास, लकड़ी और चारा आसानी से उपलब्ध हो सके। उन्होंने कहा कि वनों के वास्तविक लाभ मिट्टी, हवा और पानी हैं। इस सोच ने बाद में ‘चिपको आंदोलन’ के नारे को जन्म दिया। 1971 में सुन्दरलाल बहुगुणा ने पेड़ों की सुरक्षा में सोलह दिन तक अनशन किया। बहुगुणा के कार्य को पूरे विश्व में मान्यता मिली। इन्हें पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ प्रतिनिधि सभा को संबोधित करने का मौका मिला। अमेरिका, जापान, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी इंगलैंड, समेत सभी प्रमुख देशों में चिपको का संदेश फैलाने के लिए घूमे। बीबीसी ने इन पर ‘एक्सिंग द हिमालय’ फिल्म भी बनाई है ।

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1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई।वहीं पर्यावरण के साथ साथ उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए भी आंदोलन किया है। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया था। जिसके बाद उनके हालातों में बदलाव हुए।बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । पर्यावरण को स्थाई सम्पति मानने वाला यह महापुरुष ‘पर्यावरण गांधी’ बन गया। अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला। सुन्दरलाल बहुगुणा को सन 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया जिसे उन्होंने यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ।ऐसें महान व्यकत्तव के जाने से उत्तराखंड को बड़ी क्षति हुई है । लेकिन जब भी पर्यावरण का नाम आता रहेगा तो सुंदरलाल बहुगुणा का नाम सुनहरे अक्षरों में इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा । संवाद365 पर्यावरण प्रेमी  सुंदरला बहुगुणा को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

संवाद365,रेनू उप्रेती

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