देहरादून: लोकसभा चुनाव 2019 में इस बार हुए कम मतदान

April 13, 2019 | samvaad365

उत्तराखंड में 17वीं लोकसभा चुनाव के पहले चरण में बृहस्पतिवार को हुए मतदान का अंतिम आंकड़ा शुक्रवार सुबह जारी किया गया। जो 57.85 प्रतिशत से भी कम है। पांच बजे तक प्रारंभिक सूचना के आधार पर बताया गया था कि उत्तराखंड में 57.85 प्रतिशत मतदान हुआ। लेकिन सुबह जारी हुए आंकड़े के मुताबिक उत्तराखंड में 57.09 प्रतिशत मतदान हुआ है। यह आंकड़ा वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में कम है। 2014 में उत्तराखंड में 62.15 प्रतिशत मतदान हुआ था ।

उत्तराखंड गठन के बाद राज्य के चौथे लोकसभा चुनाव के लिए हुए कम मतदान के चलते राजनीतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई हैं। पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार प्रचार भी फिका-फिका रहा। राजनैतिक दलों की जनसभाओं में भी इस बार पहले जैसी भीड़ नहीं उमड़ी। राज्य में हुए पिछले तीन लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत में लगातार इजाफा हो रहा था लेकिन इस बार यह प्रतिशत बेहद कम रहा जिससे राजनैतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें भी देखी जा रही हैं। साल 2014 में जो उत्साह मतदाताओं में देखने को मिला था वो इसबार देखने को नही मिला । ऐसे मे संकेत साफ है कि मतदाता उदासीन था। ऐसे में देखना होगा कि उत्तराखंड में कम हुआ मतदान किसका नुकसान करेगा क्योंकि अगर मोदी लहर या कोई अंडर करंट होता तो मतदाता घर से बाहर निकलता ।

पिछले लोकसभा से मतदान प्रतिशत की तुलना

लोकसभा सीट             2014            2019

टिहरी                    57.50            54.38

पौड़ी                    55.03            49.89

अल्मोड़ा                53.22            48.78

नैनीताल                68.69            66.39

हरिद्वार                71.63                66.24

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कुल                    62.15                57.85

 

साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत

48.74 प्रतिशत

साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत …

53.43 प्रतिशत

वहीं अगर 2017 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो उसमें उत्तराखंड का वोटिंग प्रतिशत काफी अच्छा रहा था

वर्ष    मत प्रतिशत

2002      54.34

2007        59.45

2012        67.22

2017        65.56

वहीं दोनों विपक्षी पार्टियों के कम मत प्रतिशत पर अपनी अलग-अलग राय है। दोनों दलों को लगता है कि कम मतदान प्रतिशत उसके पक्ष में जायेगा। केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए यह चुनाव साख का सवाल भी है। पिछले पांच साल में उत्तराखंड में भाजपा का पूर्ण वर्चस्व रहा है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटें व वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटें भाजपा की झोली में गईं। लाजिमी तौर पर भाजपा के सामने इसी प्रदर्शन को दोहराने का गहरा दबाव है।  उधर, इसके ठीक विपरीत कांग्रेस इन दोनों चुनावों में लगे झटके से उबरना चाहती है। पार्टी के लिए यह इसलिए भी जरूरी है कि इससे उसका सियासी वजूद भी जुड़ा हुआ है। अगर कांग्रेस आशानुरूप प्रदर्शन नहीं करती तो फिर आगे उसके लिए बहुत मुश्किलें पेश आएंगी।

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देहरादून/काजल

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