रुद्रप्रयाग के इस आदर्श विद्यालय में नहीं है शिक्षक, जानें क्या है पूरा मामला

January 28, 2019 | samvaad365

बिना शिक्षकों के स्कूल कैसे आर्दश बन जाते हैं। क्या गजब की चीज होती है सरकार, और उतने ही अजब-गजब के होते हैं उसके कारनामे। जी हां, सरकार चाहे तो कुछ भी कर सकती है।

अब जनपद रूद्रप्रयाग के विकासखण्ड जखोली के पौठी के हाईस्कूल को ही ले लिजिए। सरकारों ने इस विद्यालय को साल 2016 में बिना अध्यापकों के हाईस्कूल से उच्चीकृत कर इण्टर काॅलेज और फिर उसे कैसे आदर्श का दर्जा दे दिया है यह बात आपके और हमारे गले तो नहीं उतर रही है लेकिन अध्यापकों के अभाव में यहां नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। जूनियर हाईस्कूल पौंठी को राजकीय इंटर काॅलेज में उच्चीकृत किए दो साल का समय बीत चुका है लेकिन स्कूल में प्राधानाचार्य समेत 12 पद रिक्त चल रहे हैं छात्रों की परेशानी का क्या आलम है आप भी सुन लिजिए।

प्रतिवर्ष प्रदेश सरकार शिक्षा के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च तो करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। इसका अंदाजा सहज ही आदर्श विद्यालय राजकीय इंटर काॅलेज पौंठी की स्थिति से लगाया जा सकता है। यहां इंटर में पांच महत्वपूर्ण विषय हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान के प्रवक्ताओं के पद सृजित तो किए गए लेकिन उन पर तैनाती करना सरकारें भूल गई। जबकि प्रधानाचार्य समेत कार्यालय के अन्य पांच पद भी रिक्त चल रहे हैं। जूनियर हाईस्कूल में भी दो अध्यापकों के पद रिक्त चल रहे हैं। जैसे-तैसे एक साल ग्वारवीं की कक्षा जरूर यहां पर संचालित की गई लेकिन अध्यापकों के अभाव में उसे कैलाश बांगर शिफ्त कर देना पड़ा। स्थिति ये है कि चैरा, पौंठी, भटवाड़ी, नन्वांणगांव, कुनियाली समेत दर्जनों गांवों के बच्चों को 16 किलोमीटर दूर इंटर की पढ़ाई के लिए कैलाश बांगर या फिर रामाश्रम जखोली की दौड़ लगानी पड़ती है। पूरा रास्ता जंगल और विहड़ पथरिला पहाड़ी रास्ता होने के कारण छात्रों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बेटियां तो इसी वजह से हाईस्कूल के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर पाती। अपने गांव में इंटर काॅलेज होते हुए भी 16 किमी दूर जाना पड़ता है। इसका दर्द ग्रामीणों की जुबान से साफ छलक रहा है।

विद्यालय में स्थिति अब इस कदर हाशिए पर जा पहुंची है कि जो चंद अध्यापक यहां तैनात हैं उन्हीं को सारा कार्य करना पड़ता है। जबकि शिक्षा विभाग द्वारा कभी ट्रेनिंग तो कभी अन्य कार्यों पर भी इन अध्यापकों की ड्यूटी लगाई जाती है। जिससे विद्यालय में छात्रों को खुद ही पढ़ना पड़ता है। हालांकि जिलाधिकारी द्वारा कई बार शिक्षा विभाग के माध्याम से शासन को अध्यापकों की तैनाती के लिए प्रस्ताव भेजा जा चुका हैं लेकिन कोई भी सकारात्मक कार्यवाही नहीं होती दिख रही है।

साल 2016 में तत्कालिक कांग्रेस सरकार ने इस विद्यालय को आदर्श का दर्जा जरूर दिया था लेकिन उसके बाद भाजपा की डब्बल इंजन की सरकार ने न तो अध्यापकों की तैनाती यहां की और न संसाधन ही यहां जुटाये गए। एक तरफ बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओं जैसे नारे सरकारें जरूर उछालती हैं लेकिन यहां बेटियों को 16 किमी दूर प्रति दिन पैदल शिक्षा ग्रहण करने की लिए जाना पड़ रहा है तो सहज ही समझा जा सकता है कि बेटियों और शिक्षा के प्रति सरकार का कितना लच्चर और उदासीन रवैया है। ऐसी घिन्नौनी स्थिति सरकारों के नाकारेपन को उजागर कर रही है।

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रुद्रप्रयाग/कुलदीप राणा

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