देश की पहली महिला पैरालंपिक शूटर दिलराज कौर की गुमनाम कहानी ,आज पार्क में चिप्स नमकीन बेचने को मजबूर

June 26, 2021 | samvaad365

भारत की पहली अंतर्राष्ट्रीय महिला पैरालंपिक शूटर दिलराज कौर ने राष्ट्रीय स्तर पर 28 गोल्ड मेडल के साथ-साथ 8 रजत और 3 कांस्य पदक जीते हैं । अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व कर नाम रोशन करने वाली दिलराज कौर को आज देश की सरकारें भूल चुकी हैं. और करीब 17 वर्षों से अपने हक के लिए भारत की ये होनहार खिलाड़ी अंधी हो चुकी सरकारों से लड़ रही है। दिलराज ने 2004 में शूटिंग शुरू की, अपने करियर में उन्होंने नेशनल लेवल पर 28 गोल्ड मेडल, 8 रजत पजक और 3 कांस्य पदक जीते हैं। इनमें 2005 में 29वीं नॉर्थ जोन शूटिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज, चौथी उत्तराखंड स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में सिल्वर, हैदराबाद में 49वीं नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड शामिल हैं। इसके अलावा केरल में हुई 15वीं ऑल इंडिया जीवी मावलेंकर शूटिंग चैंपियनशिप में दिलराज ने चौथी रैंक और कोयम्बटूर में 14वीं ऑल इंडिया जीवीएम शूटिंग चैंपियनशिप में 12वीं रैंक हासिल की थी। दिलराज खेल के साथ-साथ शैक्षणिक यौग्यताओं में भी आगे हैं। उन्होंने हिष्ट्री में एमए के साथ ही लॉ की पढ़ाई भी की है.।लेकिन आज देश के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने और लॉ की पढ़ाई करने के बाद भी आज उनके हुनर की कोई कदर नहीं की जा रही है।

 

दिलराज का असली संघर्ष 2019 में शुरू हुआ जब उनके पिता का देहान्त हो गया । उसके बाद उनके भाई का भी निधन हो गया पिता और भाई के इलाज में काफी खर्चा होने के कारण उनके उपर आर्थिकी का संकट गहरा गया और लम्बे संघर्ष के कारण उनकी योग्यता को देख किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। एक किराए के मकान में अपनी मां के साथ रहने वाली दिलराज का खर्चा पिता के पेंशन से ही चल रहा है।दिलराज की इस लड़ाई में उनके साथ उनकी मां कंधे से कंधा मिला कर चल रही है। मां ने ही गांधी पार्क के सामने कुछ चिप्स नमकीन और बिस्किट बेचने की शुरुआत की ताकी घर का खर्चा ठीक तरह से चलता रहे। मां का कहना है की उन्होंने सब के दरवाजे पर जाकर अपनी बेटी के लिए हक मांगा। लेकिन कहीं भी उनकी सुनी नहीं गईं। बेटी के लिए हक की इस लड़ाई में मां ने आज तक हिम्मत से काम लिया है और इस उम्र में भी ये मां, घर चलाने के लिए तपती धुप में बैठकर चिप्स और नमकीन बेच रही है।

दिलराज पर केंद्र सरकार तो दूर की बीत है, प्रदेश सरकार तक की आज तक नजर नहीं पड़ी। दिलराज औऱ उनकी मां आज तक बेटी के हक के लिए भटक रही हैं। मीडिया में खबर आने के बाद भी सरकार की नींद अभी तक नहीं खुली है। सरकार का कोई भी नुमाइंदा अभी तक ना तो परिवार से मिलने आया है ना ही उनकी कोई सुध ली है।ना जाने कितने एथिलीट आज देश का नाम रोशन करने के बाद भी अपने हक से मरहूम हैं।दिलराज कौर ने कहा की देश के हर उस एथिलीट को उसका हक मिलना चाहिए जो जिसका वो हकदार है। उन्होंने कहा की ये सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं है बल्की देश के हर उस एथलीट के मान और सम्मान की लड़ाई है जो देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी देश के लिए ही गुमनाम सा हो जाता है।

संवाद365,विकेश शाह

 

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देश की पहली महिला पैरालंपिक शूटर की गुमनाम कहानी

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