110 साल पहले उत्तराखंड का मालदार खण्डूड़ी परिवार टाटा बिड़ला की बराबरी कर रहा था

March 25, 2021 | samvaad365

उत्तराखंड का दुनिया में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व भी है. यहाँ केरल से चलकर आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर आठवीं सदी से बनाया। उसी सदी में पंवार वंश की शुरुआत हुई. जिसका राजपाठ देश की आजादी तक चला। यहाँ गोविन्द बल्लभ पंत, भक्त दर्शन, एचएन बहुगुणा, मानवेंद्र शाह जैसे नेता पैदा हुए,जिन्होंने आज़ादी से पहले और बाद में जनता पर गहरी छाप छोड़ी। हर क्षेत्र में उत्तराखंड ऐतिहासिक रहा। 19 वीं सदी जब शुरू हो रही थी तब एक परिवार ऐसा था जो टाटा और बिड़ला की उत्तराखंड में टक्कर दे रहा था। यानी संपन्न, मालदार, टैक्सपेयर। वह परिवार था खण्डूरी परिवार। काफी दिनों, महीनों तक इस परिवार पर शोध करने के पश्चात इसकी ट्री कहां कहां तक फैली यह भी जानते हैं.

पौड़ी गढ़वाल में मरगदना गांव में गंगाराम खण्डूरी ने जन्म लिया। वह वनों के जाने-माने ठेकेदार थे। उनके बेटों ने भी इसी परंपरा को कायम रखा। उनके चार पुत्र थे श्री तारा दत्त खण्डूडी, घना नंद खण्डूडी, राधा बल्बभ खंडूड़ी, चंद्रबल्बभ खंडूड़ी, सबसे बड़े भाई तारा दत्त खण्डूरी टिहरी रियासत में सर्विस करते थे और वही से कारोबार भी देखते थे दूसरे नंबर के मालदार घनानंद खण्डूरी हरिद्वार में लकड़ियों का काम देखते थे। तीसरे भाई राधाबल्लभ खण्डूरी उत्तरकाशी में रहकर जंगलों के कार्य की देखभाल करते थे। चौथे भाई चन्द्र बल्बभ खण्डूरी मसूरी में रहकर अपने परिवार की देखभाल करते थे। जाने-माने लेखक श्री भक्त दर्शन कहते हैं खण्डूरी लोगों को अपने कारोबार जमाने के लिए उस जमाने 40000 ऋण लेना पड़ा। इनकी फर्म का नाम में * सर गंगाराम घनानंद* रखा गया था 1918 तक इनका बहुत अच्छा काम चला 13 नवंबर 1918 को अचानक चंद्र बल्बभ खण्डूरी का मसूरी में बुख़ार से निधन हो गया तथा बड़े भाई तारा दत्त खण्डूरी सर्विस में टिहरी जा रहे थे उन्हें भी बुखार ने घेर लिया। इस तरह से दोनों भाईयो के देहांत के बाद कारोबार बिखर रहा था। लेकिन मालदार घनानंद खण्डूरी और राधा बल्बभ खण्डूरी ने इसे संभाल लिया. खण्डूडी बंधुओं का केंद्र बिंदु मसूरी देहरादून था, मसूरी से ही वह यमुनानगर डिपो, और टिहरी उत्तरकाशी की जंगलों का काम देखते थे। घनानंद खण्डूरी के निधन के बाद उनके छोटे भाई राधाबल्लभ खण्डूरी ने उनकी स्मृति में उनके निधन के बाद मसूरी में घनानंद हाई स्कूल स्थापित किया था। जो बाद में इंटरमीडिएट कॉलेज हो गया था। उसके बाद राज्य सरकार ने इसे अपने अधीन ले लिया। घना के विद्यार्थियों ने खूब बुलंदिया छुई.

(संवाद 365/शीशपाल गुसाईं)

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