उत्तराखंड के इस शहर से गुजरने से डरते थे अंग्रेज़ अफसर…

August 14, 2022 | samvaad365

उत्तराखंड के पंच प्रयागों में एक नंदप्रयाग की पहचान एक धार्मिक और आध्यात्मिक कस्बे के तौर पर है। लेकिन आजादी के महासंग्राम में इस तीर्थस्थल ने अंग्रेजों को घुटनों के बल चलने के लिए मजबूर किया। स्थिति यह थी कि क्रांतिकारियों को देखकर नंदप्रयाग से गुजरते वक्त अंग्रेज अफसर भी सिर से अपना हैट उतार लिया करते थे।

छोटा सा पहाड़ी कस्बा नंदप्रयाग स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और आाजादी के रणबांकुरों का संघर्ष का केंद्र था। नंदप्रयाग के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. राम प्रसाद बहुगुणा के पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता समीर बहुगुणा बताते हैं स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का यह तीर्थस्थल रहा।

तब इस कस्बे की आबादी काफी कम थी, लेकिन आसपास के हजारों लोग यहां जुटते थे। रोज प्रभात फेरी निकालकर आजादी की आवाज बुलंद करते थे। नंदप्रयाग कस्बे से चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी के अलग-अलग आंदोलनों में जेल भी गए। समीर बहुगुणा के मुताबिक उनके पिता स्व. राम प्रसाद बहुगुणा बताते थे कि आजादी के संघर्ष के दिनों में नंदप्रयाग की स्थिति यह थी कि अंग्रेज अफसर यहां से गुजरने में परहेज करते थे।

आजादी के संघर्षशील रणबांकुरों की हनक थी कि अगर अंग्रेज अफसर नंदप्रयाग से होकर जा रहे हैं तो वह अपने घोड़े से उतरकर पैदल कस्बे को पार करते थे। इतना ही नहीं पूरे कस्बे में सिर से अपना हैट उतारकर चलते थे। क्योंकि उन्हें डर था कि अगर जरा भी हनक दिखाई तो क्रांतिकारी उन्हें यहीं घेर लेंगे।

नंदप्रयाग की राजनैतिक चेतना ही थी कि इसे छोटा लखनऊ कहा जाता था। नंदप्रयाग से ही गढ़वाल मंडल की स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतियां बनती थीं। कोटद्वार के दुगड्डा में क्रांतिकारियों के अंग्रेजों के निशाने पर आने पर अधिकांश क्रांतिकारी नंदप्रयाग में ही रुककर आजादी की रणनीति को अंजाम देते थे। 15 अगस्त 1947 को देश के स्वतंत्र होने की घोषणा हुई तो पूरे इलाके के लोगों ने नंदप्रयाग पहुंचकर आजादी का जश्न मनाया था। बताया जाता है कि इस दिन नंदप्रयाग में 20 हजार लोग जुटे थे और भारत माता के जयकारों से पूरी घाटी गूंज उठी थी।

संवाद 365, दिविज बहुगुणा

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