हिमालय पुत्र डॉ. नित्यानंद ,जिन्होंने पूरा जीवन हिमालय की सेवा में किया समर्पित

February 13, 2023 | samvaad365

डॉ. नित्यानंद सही मायने में हिमालय पुत्र थे। जिनके अथक प्रयासों से उत्तराखंड का गठन हो सका। उन्होंने आजीवन सच्चे स्वयंसेवक का कर्तव्य निभाते हुए भावी पीढ़ी के लिए आदर्श प्रस्तुत किया। आगरा में जन्म लेने के बाद भी डॉ. नित्यानंद ने अपना पूरा जीवन हिमालय की सेवा में समर्पित कर दिया। वह पर्वतीय क्षेत्र से मैदानी जिलों में बसने वालों के लिए बेमिसाल उदाहरण थे। सही अर्थों में कहें तो डॉ. नित्यानंद उत्तराखंड राज्य के प्रणेता थे।

डॉ. नित्यानंद जी प्रख्यात शिक्षाविद एवं समाजसेवी थे। उनका जन्म आगरा में हुआ लेकिन उन्होंने उत्तराखंड को अपनी कर्मभूमि बनाया। नित्यानंद जी ने एक साधक की तरह मन, वचन और कर्म से समाज की सेवा की और अवकाश प्राप्ति के बाद वे कुछ समय के लिए संघ की योजना से आगरा गए,। पर वहां उनका मन नहीं लगा और फिर वे देहरादून आ गए। सन् 1991 में उत्तरकाशी में आये भूकंप के बाद उन्होंने गंगा घाटी के मनेरी गांव को अपना केन्द्र बनाया. वहां 400 से अधिक मकान बनवाए और जीवन के अंत तक शिक्षा, संस्कार और रोजगार के प्रसार के लिए काम करते रहे।

हिमालय ने पर्यटकों तथा अध्यात्म प्रेमियों को सदा अपनी ओर खींचा है। पर नौ फरवरी, 1926 को आगरा के उत्तर प्रदेश में जन्मे डा. नित्यानन्द ने हिमालय को सेवाकार्य के लिए अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया। आगरा में 1940 में विभाग प्रचारक नरहरि नारायण ने उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ा, पर दीनदयाल उपाध्याय से हुई भेंट ने उनका जीवन बदल दिया और उन्होंने संघ के माध्यम से समाज सेवा करने का व्रत ले लिया।

क्तूबर, 1991 को हिमालय में विनाशकारी भूकम्प आया। इससे सर्वाधिक हानि उत्तरकाशी में हुई। डा. नित्यानन्द जी ने संघ की योजना से वहां हुए पुनर्निमाण कार्य का नेतृत्व किया। उत्तरकाशी से गंगोत्री मार्ग पर मनेरी ग्राम में ‘सेवा आश्रम’ के नाम से इसका केन्द्र बनाया गया। अपनी माता जी के नाम से बने न्यास में वह स्वयं तथा उनके परिजन सहयोग करते थे। नित्यानंद को उत्तरांचल दैवीय आपदा पीड़ित सहायता समिति के गठन का श्रेय जाता है। जो 14 बरसों से देश की किसी भी हिस्से में आई आपदा में पीड़ितों की मदद का हरसंभव प्रयास करती है।

हिमाचल की तरह इस क्षेत्र को ‘उत्तरांचल’ नाम भी उन्होंने ही दिया, जिसे गठबंधन की मजबूरियों के कारण बीजेपी शासन ने ही ‘उत्तराखंड’ कर दिया। केन्द्र में अटल जी की सरकार बनने पर अलग राज्य बना। पर उन्होंने स्वयं को सेवा कार्य तक ही सीमित रखा। उत्तरकाशी की गंगा घाटी पहले ‘लाल घाटी’ कहलाती थी। पर अब वह ‘भगवा घाटी’ कहलाने लगी है। उत्तरकाशी जिले की दूरस्थ तमसा (टौंस) घाटी में भी उन्होंने एक छात्रावास खोला।

देश की कई संस्थाओं ने सेवा कार्यों के लिए उन्हें सम्मानित किया। उन्होंने इतिहास और भूगोल से सम्बन्धित कई पुस्तकें लिखीं। वृद्धावस्था में भी वे ‘सेवा आश्रम, मनेरी’में छात्रों के बीच या फिर देहरादून के संघ कार्यालय पर ही रहते थे। डाक्टर नित्यानंद जी का 8 जनवरी, 2016 को देहरादून में निधन हुआ।

संवाद 365

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