थराली: ये तस्वीरें हैं देवाल विकासखण्ड के ओडर गांव की, जहां ग्रामीण 2013 की आपदा में बहे पुल की मांग अब तक कर रहे हैं, लेकिन अफसोस पिछले सात सालों में इस पुल का निर्माण तो न हो सका लेकिन हर साल बरसात खत्म होते हो ग्रामीण अपने संसाधनों से खुद लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर जान जोखिम में डालकर आवाजाही करते हैं।
दरसल 2013 की आपदा में पिण्डर क्षेत्र में अधिकांश पुल आपदा की भेंट चढ़ गए थे, जिनमें से अधिकांश बन भी चुके हैं. लेकिन अब भी कई गांव ऐसे हैं, जिनके आवागमन का एकमात्र साधन अब भी नहीं बन सका है, ऐसे में ग्रामीण सरकारों से गुहार लगाकर थक चुके हैं. लेकिन अफसोस ये तस्वीरे न तो हुक्मरानों को नींद से जगा पाती हैं और न ही आपदा के जख्म भर पाती हैं.
वहीं लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता मूलचंद गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि जब तक ग्रामीण लकड़ी के पुल को तैयार नहीं कर लेते विभाग ट्रॉली को बन्द नहीं करेगा. साथ ही उन्होंने कहा कि उनके द्वारा इस साल की शुरुआत में ही विभागीय सचिव को पुल का एस्टिमेट तैयार कर भेजा गया था और इसके मुताबिक पिण्डर नदी पर 120 मीटर लंबाई और 14.4 लाख की लागत के पुल का एस्टिमेट शासन को भी भेजा जा चुका है।
वहीं कांग्रेस ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वर्तमान सरकार आपदा के छूटे कामों को अभी तक भी पूरा नहीं कर सकी है। थराली उपचुनाव में भी सरकार के मंत्री आपदा में बहे पुलों को बनाने का वादा करके ही चुनाव जीते हैं. बहरहाल आरोप प्रत्यारोप और लगातार बन रहे एस्टिमेट के बीच दिक्कतें तो ग्रामीणों को ही झेलनी पड़ रही हैं। लेकिन ये दिक्कतें कब खत्म होंगी पता नहीं।
(संवाद 365/ गिरीश चंदोला )
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