पौड़ी के कालिंका मंदिर में लगा प्रसिद्ध बूंखाल मेला, भक्तों ने किए माता के दर्शन, प्रीतम भरतवाण ने दी भजनों की प्रस्तुति

December 5, 2021 | samvaad365

उत्तराखंड में समय समय पर कई मेले लगते हैं उन्ही में से प्रसिद्ध पौड़ी जिले के चाकीसैण के कालिंका मंदिर में लगने वाला बूंखाल का मेला है जो अपने आप में कई यादें संजोए हुए हैं । हर साल लगने वाले इस मेले  को देखने के लिए दूर दूर से भारी संख्या में भक्त पहुंचते हैं ।प्रसिद्ध कालिंका मंदिर में पूजा अर्चना के साथ इस साल भी मेले का आयोजन किया गया है । मेला को राठ क्षेत्र के प्रसिद्ध बुखाल काली माता के नाम से पूरे देश में जाना जाता है । कोरोना महामारी के कारण 2 साल बाद लगे इस मेले में  कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल  ने भी शिरकत की वही पद्म त्री प्रीतम भऱतवाण ने भी मेले में आकर मां भगवती के भजन गाकर भक्तिमय माहौल बनाया ।

वहीं मेले में आए आप पार्टी के संगठन मंत्री गजेंद्र चौहान ने बताया कि थलीसैंण के चोपड़ा गांव में एक लोहार परिवार में एक कन्या का जन्म हुआ, जो ग्वालों (पशु चुगान जाने वाले मित्र) के साथ बूंखाल में गाय चुगाने गई। जहां सभी छुपन-छुपाई खेल खेलने लगे। इसी बीच कुछ बच्चों ने उस कन्या को एक गड्ढे में छिपा दिया। मंदिर के पुजारी के मुताबिक गायों के खो जाने पर सभी बच्चे उन्हें खोजने चले जाते हैं। गड्ढे में छुपाई कन्या को वहीं भूल जाते हैं। काफी खोजबीन के बाद कोई पता नहीं चला। इसके बाद वह कन्या अपनी मां के सपने में आई। मां काली के रौद्र रूप दिखी कन्या ने हर वर्ष बलि दिए जाने पर मनोकानाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद चोपड़ा, नलई, गोदा, मलंद, मथग्यायूं, नौगांव आदि गांवों के ग्रामीणों ने कालिंका माता मंदिर बनाया। मंदिर में पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी गोदा के गोदियालों को दी गई, जो सनातन रूप से आज भी इसका निर्वहन कर रहे हैं। मंदिर वर्षभर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।

 

वहीं  यूकेडी नेता मोहन काला और भाजपा नेता ने बताया कि मंदिर में सदियों से चली बलि प्रथा, बूंखाल मेला इस क्षेत्र की हमेशा से पहचान रही है। साल 2014 से मंदिर में बलि प्रथा बंद होने के बाद पूजा-अर्चना, आरती, डोली यात्रा, कलश यात्रा और मेले के स्वरूप की भव्यता इसकी परिचायक है।क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार मंदिर का निर्माण करीब 1800 ईसवीं में किया गया, जो पत्थरों से तैयार किया था। वर्तमान में मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद आधुनिक रूप दे दिया है। यह मंदिर लोगों की आस्था, विश्वास और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र है। जिसकी रौनक कलिंका मंदिर में लगने वाले बूंखाल मेले में साफ तौर पर देखी जाती है ।

संवाद365, भगवान सिंह 

 

 

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