अदरक बीज उत्पादन कर राज्य के कृषकों को आर्थिक रूप से समृद्ध किया जा सकता है, पढ़ें पूरी खबर

February 10, 2019 | samvaad365

राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में नगदी फसल के  रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है।  विभागीय आकडों के अनुसार 4876  हैक्टियर में अदरक की कास्त की जाती है जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है ।

अदरक बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-

1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र केरल ।

2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा।

3-वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर नौणी सोलन हिमांचल प्रदेश हैं।

किन्तु उद्यान विभाग विगत कई बर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम ,मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित / Truthful बीज के नाम पर रियोडी जिनेरियो किस्म बता कर करौडौ रुपये का अदरक राज्य के कृषकों को बीज के नाम पर बांटता आ रहा है ।

 अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल)इन राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग 60-80 रुपये प्रति किलो की दर  से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर राज्य में कृषकों को योजना के अंतर्गत वितरित करता आ रहा है जिस पर 50 प्रतिशत का अनुदान  विभाग द्वारा दिया जाता है।

अदरक बीज की खरीद पर कई वार सवाल उठे हैं तथा विवाद भी हुए हैं पूर्ववर्ती सरकार में भी अदरक बीज खरीद प्रकरण खूब चर्चाओं में रहा। समय समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है तो विभाग के  एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।

अदरक बीज आपूर्ति कर्ता / ठेकेदार( दलाल ) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं और न ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली कंपनी/ फर्म के अधिकृत विक्रेता। सम्मपरीक्षा /Audit से बचने के लिए इनके द्वारा फ्रुटफैड हल्दानी नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता है ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होते हैं और न ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में /Seed act/उत्तराखंड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लघंन किया जाता है ।

अधिकतर कास्तकारों का कहना है कि स्थानीय उत्पादित अदरक बोने पर उपज ज्यादा अच्छी होती है विभाग द्वारा प्रमाणित बीज के नाम पर दिये गये अदरक बीज मै बीमारी अधिक लगती है साथ ही उपज भी कम होती है। अदरक उत्पादित क्षेत्रों मै सहकारिता समितियाँ बनी हुई हैं जिनका मुख्य कार्य अदरक का विपणन करना है।ये समितियाँ कास्तकारौ से 15/20 रुपया प्रति किलो अदरक खरीद कर 30/40 रुपया प्रति किलो की दर से मंण्डियों मै बेचते हैं।

यदि जनपद स्तर पर स्थानीय समितियों से ही यहां के उत्पादित अदरक को विभाग उपचारित कर अदरक बीज के रूप में खरीद कर योजनाओं में कास्तकारौ को उपलब्ध कराये तो इससे दोहरा लाभ होगा एक तो कास्तकारौ को समय पर अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध होगा साथ ही कास्तकारौ को अदरक के अच्छी कीमत भी मिलेगी ।

अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ कास्तकार स्वयंम अदरक का बीज उत्पादित करते हैं टेहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल , कस्मोली ,आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों के साथ मेंने स्वंम वैठक की  जिसमें हरियाली ग्रामीण कृषक श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष ‌श्री हरीश चंद्र रमोला, ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष श्री कुंवर सिंह रावत व अन्य कृषकों ने भाग लिया स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की मागं  काफी रहती है । अन्य अदरक उत्पादित क्षेत्रौ देहरादून के चकरौता विकास नगर आदि क्षेत्रों में भी  कास्तकार अदरक का बीज स्वयंम उत्पादित करते हैं। हिमांचल प्रदेश की तरह राज्य में कभी भी अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गये।

राज्य बनने पर आश जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बनेंगी किन्तु दुर्भाग्य से राज्य को सक्ष्म व अनुभवी नेतृत्व न मिल पाने के कारण जिसका प्रशासकों ने पूरा लाभ उठाया  योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी। राज्य के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ। विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके ।

यदि विभाग /शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी /माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सूझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा  कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।

उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ। राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर   योजनाओं में सुधार ला सके।

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डा० राजेन्द्र कुकसाल

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