इन बेसहारा नन्हीं बच्चियों की मदद के लिए इस संस्था ने बढ़ाया पहला हाथ

February 4, 2019 | samvaad365

मामता के आंचल की छांव में नन्हें कदम धीरे धीरे चलना सिखते हैं, और पिता की पीठ पर बैठकर बच्चों की खूबसूरत आंखे सपने बुनना शुरू करती है। माता-पिता का साथ अंधेरे कमरे में दीये की रोशनी की तरह होता है जो पल-पल आपको जिंदगी जीने के नए आयाम सिखाते हैं लेकिन क्या हो अगर हाथ पकड़कर चलना सिखाने वाले ये हाथ कहीं दूर आसमान में गुम हो जाए, जहां से उनका आना भी मूमकिन न हो पाए।

ऐसे समय में एक बच्चा शायद हार के बैठ जाए, वो अपने सपनों को पूरा करना तो दूर उन्हें देखना भी छोड़ दे। दरअसल, रुद्रप्रयाग से एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमें दो नन्ही बच्चियों ने अपने माता-पिता को खो दिया। हम बात कर रहे हैं जखोली ब्लाक के त्यूंखर गांव की पांच साल की बसु और दो साल की निशा की जो अपने पिता प्रेमु लाल को दस महीने पहले हुई गंभीर बीमारी की वजह से खो चुकी थी, तो वहीं मां सुनीता देवी पति की मौत के बाद से मानसिक तनाव से ग्रसित हो गयी जिसके चलते कुछ दिन पहले ही उनकी भी मौत हो गई। अब दोनों बच्चियों के सिर से मां और पिता का साया उठ गया है। कड़ाके की ठंड में नंगे पैर ये दोनों बहनें गांव में घर-घर पर भटकने को मजबूर हैं।

भले ही गांव के कुछ परिवार इन दोनों बच्चियों को सुबह और शाम का भोजन दे रहे हैं, लेकिन ये व्यवस्था कब तक चलेगी। ठंड से बच्चों के हाथ-पैर नीले हो गए हैं। उनका घर तो है लेकिन वह किसके साथ रहेंगे। इन मासूम बच्चियों के बारे में जैसे ही ऋषिकेश की सामाजिक संस्था समूण फॉउंडेशन को पता चला तो उन्होंने बिना देरी किए इन दोनों बच्चियों के अनाथआश्रम में शिफ्ट होने तक बच्चियों के भोजन की जिम्मेदारी ले ली। संस्था ने बच्चियों की देखभाल कर रहे उनके मौसाजी को फौरन 15 दिन का भोजन मुहैया कराया, इतना ही नहीं इस संस्था ने बच्चियों के गांव पहुंचकर उप जिलाअधिकारी, चाईल्ड हेल्प लाईन, चौकी प्रभारी और कुछ अन्य सामाजिक लोगों के साथ बातचीत कर बच्चियों के परिवार, गाँववासियों और उपस्थित सभी लोगों के साथ सर्व सहमती से ये निर्णय लिया कि दोनो बच्चियोँ को शिशु बाल ग्रह देहरादून भेजा जायेगा। जब तक औपचारिकता पुर्ण होती है तब तक के लिए दोनों बालिकाएं अपने मौसा जी नथ्थी लाल के साथ रहेंगी। समूण फाउंडेशन परिवार के माध्यम से दोनो बच्चियों के लिए आगामी 15 दिनो तक का राशन प्रदान किया गया और आगे भी हर सम्भव सहयोग करने का आस्वाशन भी दिया गया। समूण फाउंडेशन की इस मदद के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि ये संस्था इन बच्चियों के लिए अंधेरे में रोशनी की एक उम्मीद बनकर आई है, शायद अब इन बच्चियों के मुश्किल हालातों में सुधार आ सकें।

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ऋषिकेश/काजल

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