केदारनाथ को संवारने में लगी रही सरकारें… उन गांवों को भूल गई जहां आज ज्यादातर विधवाएं रहती हैं…

June 16, 2019 | samvaad365

रूद्रप्रयाग: बेशक जून 2013 की जल प्रलय के छः वर्ष बाद केदारनाथ की यात्रा न केवल पटरी पर लौटी है. बल्कि नये कीर्तिमान भी यह यात्रा साल दर साल स्थापित कर रही है. यह अच्छी बात है लेकिन यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सरकारों का ध्यान केवल और केवल केदारनाथ धाम पर ही रहा है. केदारनाथ की आपदा में मरने वाले सैकड़ों परिवारों के सदस्यों की कीमत सरकारों ने 5-7 लाख लगा दी हो किन्तु उसके बाद उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया हैं. मृतकों की विधवाएं आज भी खैरात जैसी एक हजार रूपये विधवा पेंशन दी जाती हैं. लेकिन इनमें रूपयों में वह कैसे अपने परिवार को पालती हैं ये आज हम आपको बताते हैं.

पहले ये जानिए
साल 2013 की केदारनाथ जल प्रलय में सरकारी आंकड़ों की माने तो 4400  से अधिक देश-विदेश के लोगों ने गवाई थी अपनी जान.
केदारनाथ आपदा के दौरान 11,091 मवेशी बहे, 10,309 हैक्टेयर कृषि भूमि भी हो गई थी तबाह.
गाँधी सरोवर से आए तबाही के उस सैलाब ने केदारनाथ से लेकर रूद्रप्रयाग तक 100 से अधिक होटल-लॉजों को कर दिया था नेस्तनाबूत.
उच्च हिमालय से आए उस जलजले ने ने चारों तरफ मचा दिया था त्राहिमान. मोटर सड़कें, पैदल रास्ते, झूला पुल हो गए थे व्यापक रूप से तबाह.
हजारों तीर्थ यात्री फंसे थे जहां के तहां, समय पर रेक्स्यू न होने से भी हुए यात्रियों की मौतें.

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सांसद आदर्भश ग्राम भी फेल 

ही हमारी और आपकी आँखों से जून 2013 की केदारनाथ आपदा के खौफनाक मंजर वक्त के साथ ही ओझल हो सकता है, लेकिन जिन लोगों ने इस आपदा में अपनों को खोया है वे आज भी उस स्याह रात को याद कर सिहर जाते हैं. आपदा का वो मंजर हर पल उन्हें बेचैन करता है. आपदा में सबसे ज्यादा प्रभावित देवली भणिग्राम को सांसद ने गोद तो जरूर लिया है. लेकिन सांसद भुवनचंद्र खण्डूडी ने अपनी सांसद निधि का ढेला भर भी इस गांव पर खर्च नहीं किया है. आपको बताते चले कि केदारनाथ आपदा में इस गांव के 55 सदस्य काल कलवित हो गए थे. जबकि इसी के बगल के गांव लमगौंडी में भी 25 लोग आपदा की भेंट चढ़ थे. लेकिन सरकारो ने इन आपदा प्रभावित गाँवों की तरफ दोबारा पलट कर भी नहीं देखा.

अपनों का दर्द आज भी छलकता है 
उस मनहूस आपदा के जख्म इतने गहरे हैं कि छः साल बाद भी केदारघाटी के पीड़ित परिवार के घाव भर ही नहीं पा रहे हैं. उस आपदा में किसी ने अपने जवान बेटे को खोया है तो किसी ने अपने सुहाग को, किसी ने अपने भाई तो किसी ने अपने पिता को. अपनो को खोने का दर्द आज भी उनकी आँखों में से छलतकते आँसुओं से महसूस किया जा सकता है. घर के कमाऊ सदस्य खोने के बाद कई परिवारों पर आर्थिकी का घोर संकट छाया हुआ है. सरकारों ने और जनप्रतिनिधियों ने आपदा प्रभावितों की स्थिति को ठीक करने के भले ही दावे जरूर किए थे. लेकिन समय के साथ पीड़ितों को अपने हाल पर छोड़ दिया. देवली भणिग्राम की राधा देवी ने अपने दो जवान पुत्रों को केदारनाथ आपदा में खोया है और उसी गांव की सरिता देवी ने भी अपने पति को केदारनाथ त्रासदी में गांवाया है. घर के अकेल कमाऊ सदस्य के चलते जाने के बाद आज इन परिवारों की स्थिति भुखमरी के कगार पर पहुंच चुकी हैं.

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उलझे धागों से सुलझ रही जिंदगी 
भले ही सरकारों ने इन आपदा प्रभावितों की ओर ध्यान नहीं दिया हो लेकिन कुछ गैर सरकारी संगठन हैं जिन्होंने इन बेसहारा लोगों को सहारा देने का कार्य भी किया है. आपदा के बाद मंदाकिनी बुनकर महिला समूह ने देवली भणिग्राम लमगौण्डी, तुलंगा, ल्वारा, फलीफसालत जैसे अनेक गावाओं में सिलाई.बुनाई.कताई जैसे लघु कुटीर उद्योग आरम्भ किए हैं जिसमें आपदा प्रभावितों को रोजगार दिया हैं. इन्हीं सिलाई सेंटरों में उलझे धागों से आपदा प्रभावित अपनी जीवन की डोर सुलझा रही हैं.

केदार तो चमक गया बाकी का क्या 
आपदा से प्रभावित केदारघाटी के देवली भणिग्राम के 55, लमगौड़ी 25, तुलंगा के 25, ल्वारा 20, फलीफसालत 11 सहित अनेक गांवों के मृतकों का आंकड़ा बहुत ज्यादा है किन्तु आपदा के एक वर्ष तक सरकारें वादे करते रहे लेकिन उसके बाद पलट कर भी इन गावों की ओर नहीं देखा. लोगों का साफ आरोप है कि सरकार का ध्यान केवल व केवल केदारनाथ धाम को सजाने.संवारने पर ही है. अपदा में बहे गावों को जोड़ने वाले मोटर सड़के, पैदल रास्ते आज भी हिचकोले भरे सफर करने के लिए मजबूर करते हैं. आपदा ग्रस्त सैकड़ों विद्यालय टीन सेटों पर संचालित हो रहे हैं. स्वास्थ्य सेवायें हाशिए पर हैं. केदारनाथ में तीर्थपुरोहित और पंडा समाज के लोगों का जमीन और भवन अब तक वापस नहीं हुए हैं जिससे उनका रोजगार भी छिन गया है. आपदा से सबसे अधिक प्रभावित देवली भणिग्राम जैसे गांव को सांसद आदर्श ग्राम का दर्जा जरूर दिया गया हैं लेकिन इन गांवो की बदहाली सरकार के दावों की कलई खोलती हुई नजर आ रही है. हां यह एक जरूर आशा जगाने वाला विषय है कि केदारनाथ में हुए पुनर्निर्माण कार्यों से केदारनाथ की यात्रा पटरी पर लौटी है और यहां के स्थानीय लोगों यात्रा पर टिकी आर्थिकी पुर्नजीवित हुई है.

(संवाद 365/कुलदीप राणा)

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