जन्माष्टमी विशेष: प्रतापनगर में सेम मुखेंम के जंगल की बीच बना भगवान श्री कृष्ण का मन्दिर

August 30, 2021 | samvaad365

टिहरी जिले में प्रतापनगर में सेम मुखेंम के जंगल की बीच बना भगवान श्री कृष्ण का मन्दिर है जहां पर लाखों श्रद्वालुओं ने भगवान श्री कृष्ण से जय कारे के साथ भगवान के दर्शन कर मन्नतें मांगी। यहां पर स्थानीया देवता गणों की डोलियां भगवान श्री कृष्णा मेले के दिन मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं.

इस मन्दिर में जो भी आता वह खाली हाथ नहीं लोटता है, माना जाता है की यहां पर पुत्र प्राप्त की मन्नतें पूरी होती हैं और मन्दिर के पास बने कुण्ड के पानी से कुश्ट रोग दूर होते हैं.

दन्त कथाओं में इसका प्रमाण है जिसके आधार पर कहा जाता है कि इस क्षेत्र में राजा गगू रमोला  से भगवान श्री कृष्ण ने साधु की वेशवूषा में जा कर राजा गगू रमोला से 2 गज जमीन मांगी लेकिन राजा ने हठ धर्मिता के कारण भगवान श्री कृष्णा को 2 गज जमीन नहीं दी. तो भगवान श्री कृष्णा ने राजाकी सारी भेंस, बकरी और पशुओं को पत्थर का बना दिया था. जिनका प्रमाण आज भी यहां जिन्दा है. साथ ही भगवान कृष्ण को राजा ने भिक्षा नहीं दी तो कृष्णा ने श्राप दिया थी कि जिस तरह से में तुझ से भीख मांग रहा हूं तेरा कुटुम्ब का हर व्यक्ति भीख मांगेगा. तो आज भी सेम मुखेंम के लोगों को हर साल में एक बार भीख मांगने जाना पडता है. चाहे वह करोड़ पति ही क्यों ना हो.

माना जाता है की बाद में श्री भगवान कृष्ण ने राजा गंगू रमोला की पत्नी के सपने में आकर कहा कि अगर उनका पति अधर्मिता करेगा तो बडा अर्नथ हो जायेगा. जिसके बाद उसकी पत्नी ने राजा को समझाया तो राजा ने भगवान श्री कृष्ण से मांफी मागी उसके बाद भगवान श्री कृष्णा ने उनको माफ किया उसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने राजा की पत्नी को कहा जो वर मांगोगे वह मिल जायेगा,  राजा की कोई ओलाद नहीं थी तो उन्होंने पुत्र प्राप्त होने को वरदान मांगा तो वरदान मिला उसके बाद राजा के दो पुत्र हुए बिन्दुआ ओर सिद्धुआ जो आगे चल कर प्रसिद्ध हुये.

यह भी कहा जाता हें कि जब कालन्दी नदी पर भगवान श्री कृष्ण की गेंद गिरी तो कालिया नाग को नदी से भगाकर सेम मुखेम में जाने को कहा था.

यह पर देश विदेशों के लोगों की बडी आस्था है. देश का 11वां और उत्तराखंड का 5 वां धाम के रूप में माने जाने वाला कृृष्णा भगवान की तप स्थली है सेम मुखेम. टिहरी के सेम मुखेम के ऊंची-ऊंची चोटी जगंलो के बीच में कृृष्ण भगवान की तप स्थली है .

यहां के पुजारी बताते हैं कि हमारे पुराने दन्तकाओ में वर्णन हे कि जो भी भक्त यह आते हे चाहे वह कुष्ट रोग हो या ग्रह कलेश किसी भी प्रकार की बेदनाओ से पीडित हो यह आकर मन्नत मागने से पूरी हो जाती हें।साथ ही बताते हे कि जब हिडिम्बा राक्षस यह इनके मारने आई थी तो उस समय कृृष्णा भगवान ने उसे यही मार दिया था तब उस समय उस राक्षस के यहां 2 शरीर के हिस्से गिरे. उनको उसी के नाम से जाना जाने लगा।ओर आज भी उन गावो के नाम उसी राक्षस के नाम पर पडे हैं.

आज भी सेम मुखेम मन्दिर के मेदान में पशुओ की पत्थर शिला बनी हें ओर आज भी यह मान्यता हे कि इस गाव के लोग चाहे कितना ही बडा आदमी ओर धनवान क्यो न हो उसे जीवन में एक बार भिक्षा मागने जरूर जाना पडता है. और जिन लोगों की जन्म कुण्डली में काल सर्पकार्प योग होता है तो वह लोग चांदी के बने दो सर्प नाग नागिन के यह लाकर मन्दिर में चढाता हें तो उसकी अकाल मृत्यु से निजात मिलता है.

टिहरी गढवाल के प्रतापनगर तहसील में समुद्र तल से 7000 हजार फीट की ऊंचाई पर पहड़ियों के बीच भगवान कृष्णा के नागराजा के स्वरूप का मन्दिर है. इस पत्थर तक पहुंचने के लिये टिहरी जिला मुख्यालय से लम्बगाव से 10 किलोमीटर कोडार होते हुये तलबला सेम तक वाहन से पहुचा जाता है. उसके बाद खडी चएाई पैदल चलकर सेम मुखेम मन्दिर तक पहुंचते हैं.

(संवाद365/बलवंत रावत)

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