जानिए कैसे मनाया जाता है उत्तराखंड का खास पर्व फूलदेई

March 14, 2019 | samvaad365

देवभूमि उत्तराखंड न केवल प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है बल्कि इस प्रदेश की अपनी एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है। यहां की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराएं खासतौर पर धर्म और प्रकृति में बसी हैं। यहां के हर त्यौहर में प्रकृति की महत्ता झलकती है।

ऐसा ही एक त्योहार है-फूलदेई। फूलदेई उत्तराखंडी परम्परा और प्रकृति से जुड़ा सामाजिकसांस्कृतिक और लोक-पारंपरिक त्योहार है। यह त्यौहार चैत्र संक्रांति यानि कि चैत्र माह के पह्ले दिन से शुरू होता है और आठ दिनों तक चलता है। गढ़वाल में इसे घोघा कहा जाता है। दरअसल पहाड़ के लोगों का जीवन पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर रहता है। इसलिये यहां के त्यौहार किसी न किसी रूप में प्रकृति से जुड़े होते हैं।

पहाड़ के लोग प्रकृति को एक वरदान के रूप मे स्वीकर करते है और अपने लोक त्योहारों से उसके प्रति अपना प्यार और समर्पण जताते हैं। फूलदेई त्योहार का संबंध भी प्रकृति से ही जुडा है। यह त्योहार बसंत ऋतु के स्वागत का प्रतीक है। चैत्र महीने के पहले दिन फूलों का सुंदर उपहार देने के लिये गांव के बच्चों के माध्यम से प्रकृति मां को धन्यवाद दिया जाता है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह ही उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से फ्योंलीबुरांसबासिंग आदि जंगली फूलो को चुनकर लाते हैं। जिसके बाद बच्चे और महिलायें मिलकर घोघा देवता की डोली सजाते है। 

गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के गीत के साथ विलुप्त होती उत्तराखंड की संस्कृति एक बार फिर जीवंत हो उठी। जी हां लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का गीत ‘हे जी सारयों मां फूली गै होलि फ्योंलि’ का तीसरी पीढ़ी भी लुत्फ उठा रही है। फूलदेई के मौके पर सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रही है उनकी पौत्री ‘छुबकी’ की ये वीडियो। आप भी देखें…

Posted by Samvaad Portal on Friday, 15 March 2019

एक थाली या रिंगाल की टोकरी में चावलहरे पत्तेऔर फूलों को सजाया जाता है। जिसके बाद घोघा देवता की पूजा की जाती है। बच्चों की टोली घोघा देवता की डोली, फूलों की थाली और डलिया लेकर ग़ाव मे घर-घर जाती है और हर घर की देहरी पर फूल डालते हैं। ये फूल अच्छे भाग्य के संकेत माने जाते हैं। इस तरह से यह त्योहार आठ दिनों तक मनाया जाता है।

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संवाद365/पुष्पा पुण्डीर

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