पिथौरागढ़ निवासी नरेंद्र चंद 20 साल सैन्य सेवा के बाद अब समाज सेवा में निभा रहे हैं अहम भूमिका

October 17, 2022 | samvaad365

पिथौरागढ़ निवासी नरेंद्र चंद 20 साल सैन्य सेवा के बाद अब सेवानिवृत्त होकर समाज सेवा में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

नरेंद्र चंद का जन्म 25 नवंबर 1959 को पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 9 किमी दूर पिथौरागढ़ थल रोड पर स्थित ग्राम सभा बीसाबजेड के गांव सुपोखरा में हुआ था.

इनके पिता जी स्वर्गीय महाजन चंद और माता पार्वती देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थी, पिता पूर्व में ग्राम प्रधान भी रहे,स्वर्गीय महाजन चंद बिसाबजेड जूनियर हाई स्कूल के संस्थापक सदस्यों में से रहे थे,आज यह विद्यालय इंटर कॉलेज तक की शिक्षा देता है, नरेंद्र चन्द का विवाह साल 1984 में इंदु चंद के साथ हुआ जो बाद में बाल विकास परियोजना अधिकारी के पद में सेवानिवृत्त हुई.

आपको बता दें कि हर व्यक्ति अपने जीवन में एक सपना सजोये रखता है,ठीक इसी तरह नरेंद्र चन्द का भी सपना था कि वह भी भारतीय सेना में अफसर बनकर देश की सेवा करें क्योंकि यह जिंदगी मिलेगी न दोबारा इसलिए जीवन जीने के लिए जीने की कला का आना जरूरी है, जीवन जीने के लिए सकारात्मक भाव जरूरी है, उन्हें अफसर बनकर देश सेवा करने का जज्बा था.

लेकिन परिवार में आर्थिक स्थिति एवं संसाधनों की कमी थी नरेंद्र चंद 1978 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ से स्नातक की डिग्री हासिल की नरेंद्र चंद को पता था कि यदि कोई विद्यार्थी एनसीसी से सी श्रेणी का प्रमाण पत्र हासिल कर लेता है,तो उन्हें सेना में अफसर बनने में मदद मिल सकती है. उन्होंने स्नातक की डिग्री के साथ साथ ही एनसीसी के सी प्रमाण पत्र भी हासिल किया जैसे तैसे अपने गांव से पैदल चलकर डिग्री कॉलेज से स्नातक तो कर लिया पर परिवार की आर्थिक स्थिति सेना में अफसर परीक्षा के लिए बार-बार बाहर परीक्षा केंद्रों तक जाने आने के लिए परिवार खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं था.

संसाधनों आर्थिक स्थिति को आड़े आते देख सेना में इस सपने को सँजोने के लिए फरवरी 1979 में सेना शिक्षा कोर में शिक्षक के रूप में भर्ती हो गए.

सेना में रहते हुए 1981 में सम्मिलित रक्षा सेवा में सम्मिलित हुए परंतु परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहा उनका कहना है कि 1982 में उन्होंने आर्मी कैडेट कॉलेज जो कि सेना अफसर तैयार करने के लिए परीक्षा आयोजित करती है, वहां से लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की और सर्विस सिलेक्शन बोर्ड भोपाल में सम्मिलित हुए. लेकिन इस बार भी परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहा सेवा में रहते हुए पोस्ट ग्रेजुएट पर स्नातक की डिग्री हासिल की सैन्य सेवा के दौरान इनका जूनियर कमीशन अफ़सर शिक्षा में प्रमोशन हो गया. जब वह बार-बार आर्मी ऑफिसर के लिए अप्लाई करने के बाद भी सफल नहीं हुई तो 20 साल की सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त ले ली.

सैन्य सेवा से निवृत्ति के बाद उन्हें लगा कि अब समाज सेवा करनी चाहिए क्योंकि अनुशासन कर्तव्य परायणता व त्याग की शिक्षा की पूजी तो उनके हाथ में थी ही यदि उसका उपयोग सही तरह से हो सके तो समाज की दिशा और दशा को बदला जा सकता है, लेकिन उन्हें पता था कि समाज सेवा में भी हम आर्थिक मदद के द्वारा ही इस क्षेत्र में आगे बड़ा जा जा सकता हैं, इसी दौरान उन्हें एक जगह पर लिखा मिला कि हम शब्द समय साहित्य एवं सेवा के लिए शरीर द्वारा भी समाज सेवा कर सकते हैं तो वह इस क्षेत्र मैं कूद पड़े समाज सेवा का क्षेत्र ऐसा है, कि जिसमें आकाश की ऊंचाई की कोई सीमा नहीं है वैसे ही समाज सेवा का क्षेत्र काफी विस्तृत है,वैसे भी माना जाता है कि इस दिन मैं किसी भी क्षेत्र में ऊंचाई तक नहीं पहुंचा जा सकता है चाहे फिर क्षेत्र राजनीति का हो या व्यापार का हो या फिर कला विज्ञान साहित्य का हो समय तो लगता ही है.

आज उन्हें सेवा करते हुए 23 साल हो गए हैं ,आपको बता दें कि वह पूर्व सैन्य अधिकारी व लेखक के साथ साथ आज भी विभिन्न संगठनों से जुड़े हैं जिसमें समाज सेवा करते रहे उनका झुकाव अध्यात्म की ओर हो गया है अध्यात्म में बताया जाता है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य नर से नारायण बनना है इस दुनिया में करोड़ों लोग आते हैं जीवन के उद्देश्य को जाने बिना चले जाते हैं अध्यात्म द्वारा हम जीवन में शांति की खोज प्राप्ति के क्षेत्र में भी आगे बढ़ते हैं अध्यात्म क्षेत्र मैं जाकर उन्होंने एक पुस्तक अध्यात्म में चलें सुख से जिए लिखी जिसकी समाज द्वारा सकारात्मक प्रतिक्रिया भी उन्हें मिली इस पुस्तक में बताया गया है कि आज का मानव भौतिकवाद से प्रभावित होकर धन-संपत्ति की तलाश में नजाकर शांति की दिशा मैं बढ़कर जीवन को सफल बनाया जा सकता है जीवन जीना एक कला है जो इस कला को जानता है वह सुखी जीवन व्यतीत करता है जन्म लेना भाग्य की बात मृत्यु होना समय की बात निर्णय के बाद भी लोगों के दिलों में जगह मिलना कर्मों की बात है भगवान ना मैंने कभी देखा ना तुमने कभी देखा हैं ना ही भगवान से बातचीत हुई है आपस में आमना-सामना भी नही हुआ लेकिन जब भी दुख आता है याद तेरी आती है कुछ ऐसे ही शब्द हैं नरेंद्र चंद के…

नरेंद्र चंद पहले देश सेवा अब समाज सेवा के साथ-साथ अध्यात्म के रास्ते में वह आगे बढ़ रहे हैं जिसका लाभ खुद को समाज को हो रहा है भगवान से प्रार्थना करते हैं कि आगे भी सब कुछ बेहतर ही हो उनका कहना है कि सभी लोग खुशी रहे सबका विकास हो सब आनंद में रहे यही उद्देश्य लेकर वह आगे बढ़ रहे हैं 63 वर्ष की आयु होने के बाद भी आज वह निरंतर समाज सेवा में व्यस्त रहते हैं हमें उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है उनसे पूछने पर भी वे बताते हैं कि वह समाज के ऋणी है इससे उत्तरण होने की कोशिश में हैं भविष्य में भी उनकी एक अध्यात्म पर दूसरी पुस्तक लिखने की तैयारी चल रही है.

(संवाद 365, मनोज चंद)

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