रुद्रप्रयाग: केदारनाथ त्रासदी की 7वीं बरसी… इस साल कोरोना से व्यापार हुआ चौपट

June 16, 2020 | samvaad365

रुद्रप्रयाग: 16 और 17 जून 2013 को आए बाढ़ के सैलाब ने केदारपुरी समेत केदारनाथ के पैदल रास्तों में बसे बाजारों और उसके निचले इलाकों को ऐसा नेस्तनाबूत किया कि उनका नामो निशान ही मिट गया। आज भी वह भयावाह मंजर आँखों के सामने आता है तो रूह कांप जाती है। इस घाटी के अधिकाश लोगों का रोजगार केदारनाथ यात्रा पर ही निर्भर रहता है ऐसे में रोजगार करने गए लोग प्रकृति की इस विभिषीका के आगे सदा के लिए मौन हो गए। किसी का जवान बेटा तो किसी का सुहाग छिन गया। किसी का भाई तो किसी कि हाथों की मेंहदी सुखने से पहले ही उसकी दुनियां उजड़ गई। चारों तरफ चीख पुकार शोक  विलाप ही दिखाई दे रहा था। लोगों के दिलों में इस त्रासदी का इतना भय था समा गया था कि लोग केदारनाथ दोबारा आना तो रहा दूर केदार के नाम से ही डर जा रहे थे। हालांकि उसके बाद स्थितियां धीरे धीरे बदलने लगी।

आपदा के बाद उत्तराखण्ड और केन्द्र सरकार ने यहां युद्ध स्तर पर पुनर्निर्माण के कार्य किए। हाड़कपाती ठंड और दर्जनों फीट बर्फ होने के बाद भी शीतकाल के दौरान भी पुनर्निर्माण के काम बंद नहीं किए परिणामस्वरूप 2015 में ही यहां श्रद्धालुओं की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिला। आपदा पर भक्तों की आस्था भारी पड़ने लगी और वर्ष दर वर्ष यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी तो व्यवस्थाएं भी दुरूस्त होती चली गई। आपदा के कारण छिन्न भिन्न हुआ रोजगार भी पटरी पर लौटने लगा। आलम यह रहा कि बीते वर्ष रिकार्ड तोड़ 10 लाख से अधिक भक्तों ने बाबा के दरबार में मथा टेका। लेकिन इस वर्ष यात्रा आरम्भ होने ठीक एक माह पूर्व कोरोना वायरस ने देश में दस्तक दे दी जिस कारण इस वर्ष यात्रा को स्थगित करना पड़ा।

उत्तराखण्ड की आर्थिकी की रीढ़ माने जाने वाली केदारनाथ यात्रा केदारघाटी के हजारों परिवारों के रोजी रोटी का एक मात्र साधन है। 2013 की आपदा ने जहां इस घाटी के लोगों को गहरे जख्म दे रखे थे वहीं रोजी रोटी भी छिन ली थी। धीरे-धीरे अब यात्रा पटरी पर लौटने के कारण पुनः रोजगार मिल रहा था लेकिन कोरोना वायरस ने फिर से 2013 के जख्मों को कुरेदने का कार्य किया। ऐसे में केदारघाटी समेत पूरा जनपद त्रस्त और पस्त नजर आ रहा है।

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संवाद365/कुलदीप राणा

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