रुद्रप्रयाग: इलायची की खेती बनी रोजगार का नया जरिया

April 9, 2019 | samvaad365

एक ओर पहाडों के किसान जंगली जानवरों के चलते खेती छोड़ने को मजबूर हैं तो वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो अब खेती के नये तरीके अपना रहे हैं और उससे अच्छी खासी आमदनी भी कर रहे हैं। जानवरों से फसल बचाने के लिए जिले के कोटमल्ला गांव की दो युवतियों ने अब पारंपरिक खेती को छोड़कर इलायची की खेती करनी आरंभ कर दी है जिससे उन्हें अब अपनी फसल के बर्बाद होने का भी डर नहीं है।

रुद्रप्रयाग जनपद के रानीगढ़ पट्टी क्षेत्र के कोट-मल्ला गांव की दो युवतियां बड़ी इलायची की खेती से जिले से पलायन को रोकने में अपना सहयोग दे रही हैं। जहां एक तरफ जिले के काश्तकार जंगली जानवरों और उनके आतंक से खेती से मुंह मोड़ रहे हैं, जिससे व्यापक पैमाने पर खेती बंजर का स्वरूप धारण कर रही है तो वहीं इन दोनों लड़कियों ने इलायची की खेती कर ऐसा नायाब तरीका निकाला है जिसे न कोई भी जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुँचाता है और अच्छी खासी आमदनी इस फसल से हो रही है। इलायची की खेती करने वाली मनीषा और सुमन ने इसकी शुरुआत पिछले वर्ष की थी, और पहले ही वर्ष से इन्हें काफी मुनाफा हुआ। इसके बाद वे लगातार इस कार्य में जुटे हुए हैं। मनीषा ने एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से इंग्लिश में एमए किया है और सुमन बीकॉम की छात्रा हैं। इन दोनों ने मिलकर ग्रामीणों के लिए एक नई मिसाल कायम की है।

मनीषा और सुमन दोंनो ने मिलकर लगभग दस नाली की भूमि में इलायची की खेती शुरु की है और इससे उन्हें काफी फायदा हो रहा है। इलायची की फसल को जंगली जानवरों से कोई नुकसान नहीं है, इसलिए जो भी फसल होती है उसे वे बेच देते हैं। इलायची बहुत ही महंगा मसाला है और छोटे-बड़े होटलों से लेकर फाइव स्टार होटलों तक इसकी बहुत डिमांड है। इलायची की कीमत लोकल बाजार में पन्द्रह सौ रुपये प्रति किलो है। मनीषा और सुमन के साथ ही युवा कृषक लक्ष्मण सिंह चौधरी भी बड़ी इलायंची की खेती कर रहे हैं।

प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली का कहना है कि गांव से हो रहे पलायन को रोकने के लिए गांव में तकनीकी तरीके से खेती करनी होगी। उन्होंने कहा कि पॉलीटेक्निक करने वाले बच्चों को गांव में तकनीकी रुप से खेती के रास्ते ढ़ूढ़ने होते हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से गांव के युवा बच्चों ने अपने गांव में रहकर बड़ी इलायची की खेती का विचार किया और इस पर मेहनत की, ऐसे ही सभी को अपनी जन्मभूमि में रहकर आर्थिक पहलूओं पर सोचना चाहिए और काम करना चाहिए। इससे ना सिर्फ पलायन रुकेगा, बल्कि राज्य भी मजबूत होगा। मनीषा और सुमन का मिशन इलायची वाकई में काबिले तारीफ है और सभी युवाओ को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।

कहते हैं मुसीबतों से भागना नहीं चाहिए बल्कि उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए तभी जाकर मुकाम हासिल होता है और यही कुछ किया है इन दो युवतियों ने। जंगली जानवरों से खेती को बचाते हुए अपनी आर्थिकी को तो मजबूत किया ही है साथ ही रोजगार के अभाव में पलायन की बात करने वालों के मुंह पर भी यह पहल वास्तव में एक करारे तमाचे से कम नहीं है।

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रुद्रप्रयाग/कुलदीप राणा

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