दम तोड़ती सरकारी शिक्षा व्यवस्था में प्राण भर रहे सत्येन्द्र भण्डारी

March 23, 2019 | samvaad365

इस दौर में सरकारी शिक्षा व्यवस्था की हालत इतनी माली हो गई है कि सरकारी विद्यालय का नाम सुनते ही अभिभावकों के चेहरे पर सिरहन आ जाती है और तमाम तरह से सवालिया निशान लगाते हुए उसे दुतकार देते हैं। यही वजह है कि अभिभावक अपने पाल्यों को सरकारी स्कूलों की बजाय प्राईवेट विद्यालय में दाखिला दिलाने में उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित समझ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ सत्तेन्द्र भण्डारी की प्राथमिक विद्यालय कोटतल्ला में हर साल छात्रों की संख्या बढ़ रही है। इसके पीछे का कारण शिक्षक भण्डारी का त्याग समर्पण लग्न और छात्रों के प्रति अपनापन ही है। शिक्षा की ज्योति जलाने के साथ ही वे कई वर्षों से पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा भी उठाये हुए हैं।

 जनपद रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि विकासखण्ड के राजकीय प्राथमिक विद्यालय कोटतल्ला में दम तोड़ती शिक्षा व्यवस्था में प्राण भरने वाले शिक्षक सत्येंद्र भंडारी ने न केवल यह साबित किया है कि अगर लग्न और समर्पण भाव से काम करें तो बेहतर मुकाम पाया जा सकता है बल्कि यह भी बता दिया है कि शिक्षक की भूमिका किस तरह समाज में ज्ञान की ज्योति को प्रज्वलित करती है। रानीगढ़ पट्टी के कोटतल्ला का प्राथमिक विद्यालय शिक्षक सत्तेन्द्र भण्डारी की समर्पण भाव से कार्य करने की बदौलत ही आज जिले का आर्दश विद्यालय बन चुका है। साल 2013 में जब शिक्षक भण्डारी की तैनाती इस विद्यालय में हुयी थी तो विद्यालय आपदा की मार झेल रहा था।

आपदा से क्षतिग्रस्त हुए विद्यालय का संचालन गांव की पंचायत भवन के एक कमरे पर हो रहा था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि पांच कक्षाओं का एक कमरे में किस कदर पाठन-पठन चल रहा होगा? विद्यालय की यह गंम्भीर परेशानी शिक्षक सत्तेन्द्र भण्डारी से न देखी गई और उन्होंने तत्तकालिक उपजिलाधिकारी ललित नारायण मिश्र से सम्पर्क किया और फिर विद्यालय निर्माण को लेकर गुहार लगाई। शिक्षक सत्तेन्द्र भण्डारी ने राजकीय इण्टर काॅलेज मक्कू में डंप पडे 185000 रुपये अपने विद्यालय के लिए स्वीकृत करवाये और ग्रामीणों के सहयोग से विद्यालय भवन का निर्माण करवाया। इसके साथ ही शिक्षा की दशा को सुधारने में भी वे लगातार प्रयासरत रहे।  इसके बाद पानी की किल्लत से जूझ रहे विद्यालय में पानी और  विद्यालय के चारों तरफ सुरक्षा दिवाल का निर्माण भी भण्डारी के प्रयासों से ही संभव हो सका है। जबकि वल्र्ड बैंक से विद्यालय निर्माण के लिए 68 लाख स्वीकृत करवाकर विद्यालय को और अधिक भव्य रूप से बनवाया। नये विद्यालय भवन पर अनेक चित्रकारी के माध्यम से भी बच्चों ज्ञान दिया जा रहा है।

 अमूमन पहाड़ के सरकारी विद्यालयों की स्थिति खस्ताहाल बनी हुई है। इन विद्यालयों में न शिक्षकों को शिक्षा व्यवस्था से कोई सरोकार रहता है और न उनके अभिभावकों को। इसका एक कारण यह है कि पहाड़ के गांवों में वहीं लोग रह गये हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और अपने पाल्यों को अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते हैं जबकि सरकारी शिक्षकों को अपने समय काटने से मतलब रहता है क्योंकि शिक्षा व्यवस्था सुधरे या न सुधरे उनकी वेतन तो महिने में आनी है। लेकिन शिक्षक सत्तेन्द्र भण्डारी ने इस रीति को बिल्कुल बदल दिया है और सरकारी शिक्षकों के प्रति ऐसी परिभाषा की व्याख्या करने वालों को बता दिया है कि सभी शिक्षक इस श्रेणी में नहीं आते हैं। साथ ही शिक्षक भण्डारी उन सभी सरकारी स्कूल को आईना दिखा रही हैं जो आज बंदी के कगार पर खड़ी है।

 श्री भण्डारी के प्रयासों से स्टेट बैंक लदोली द्वारा इस विद्यालय को कम्प्यूटर प्रदान किए गए जिसके  बाद बच्चों की कम्प्यूटर की पढ़ाई भी आरम्भ की गई। यह जिले का पहला प्राथमिक विद्यालय है जिसमें कम्प्यूटर की शिक्षा प्रदान की जा रही है। इसके साथ ही अपने सहयोगी अध्यापिका के सहयोग से स्कूल में साईकिल भी लाये तथाा बच्चों को साईकिल चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके साथ संगीत का पूरा साजो सामान भी शिक्षक भण्डारी अपने पैंसो से खरीदकर लाये और बच्चों को संगीत की शिक्षा भी देने लगे। स्थानीय हस्तशिल्पयों के माध्यम से भी रिंगाल से टोकरी, कलमदान आदि बनाना सिखाया जा रहा है ताकि बच्चे स्वरोजगार के गुर प्राथमिक स्तर से प्राप्त कर ले। कोटतल्ला तथा आसपास के ग्रामीणों से सत्तेन्द्र भण्डारी का मृदुभाषी व्यवहार और लगातार बेहतर समन्वय के कारण बच्चों की शिक्षा के स्तर में लगातर सुधार आने लगा। जब शिक्षक सत्तेन्द्र भण्डारी की तैनाती इस विद्यालय में हुई थी तो मात्र 17-18 बच्चे यहां अध्ययनरत थे। लेकिन एक साल के अन्दर ही सत्तेन्द्र भण्डारी की मेहनत रंग लाने लगी और विद्यार्थियों की संख्या में बढोत्तरी होने लगी। शिक्षक भण्डारी ने विद्यालय में शिक्षा का माहौल इस कदर बना दिया कि अन्य गांवों के बच्चे भी इस विद्यालय में दाखिला लेने लगे। अब इस विद्यालय की इतनी बेहतर स्थिति है कि वर्ष 2017 में पूरे 42 छात्र-छात्रायें अध्यन्नरत हैं। अभिभावकों के साथ श्री भण्डारी का बेहतर तालमेल होने के कारण छात्रों की हर गतिविधियों पर नजर रहती है जिससे छात्र की कमियों तथा खूबियों से अध्यापक तथा अभिभावक दोनों वाकिफ रहते हैं।

 शिक्षा के साथ-साथ शिक्षक भण्डारी ने कई वर्षों से पर्यावरण संरक्षण का भी बीड़ा उठाया हुआ है। पर्यावरण गोष्ठीयां तथा जंगल बचाओं पेड़ लगाओं अभियानों में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रहती है। अपने विद्यालय कोटतल्ला में भी वन विभाग के सहयोग से उन्होंने अनेक प्रजातियों के 4000 से अधिक वृक्षों की नर्सरी तैयार कर रखी हैं जबकि विद्यालय के चारों तरफ अनेक फलदार और छायादार वृक्ष लगाये हुए हैं। शिक्षक भण्डारी के विद्यालय में जब भी कोई नया छात्र दाखिला करवाता है तो उसके अभिभावकों के साथ एक पौधा लगवाते हैं और जब तक वह छात्र उस विद्यालय में रहेगा उस पौधे की देख रेख करने की जिम्मेदारी उस छात्र की रहती है। इस प्रकार शिक्षा और पर्यावरण दोनों के संरक्षण में जुटे शिक्षक सत्तेन्द्र भण्डारी एक मिशाल बन चुके हैं।

एक ओर आज सरकारी विद्यालयों पर सरकार भारी-भरकम खर्च करने के बावजूद भी सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ढर्रें पर नहीं ला पा रही है। हर साल सैकड़ों प्राथमिक विद्यालय छात्र संख्या शून्य होने के कारण बंद हो रही हैं। वहीं अगर गौर किया जाय तो प्राईवेट स्कूलों की हर जगह भरमार है और कम खर्चे के बावजूद भी शिक्षा की स्थिति वहां बेहतर है। ऐसे में शिक्षक सत्तेन्द्र भण्डारी ने सरकारी शिक्षा को आईना दिखाते हुए एक अभिनव उदाहरण दिया हैं। यकीनन अगर हर सरकारी शिक्षक इस प्रकार समर्पण भाव से कार्य करें तो पुनः सरकारी शिक्षा व्यवस्था पटरी पर आ सकती है और लोगों का सरकारी शिक्षा के प्रति जो मोह भंग हुआ है वह वापिस लौट सकता है।

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रुद्रप्रयाग/कुलदीप राणा

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