लोगों के साथ ‘पलायन’ कर रहे त्यौहारों को सहेज रहे कुछ लोग, जानें क्या है कुमाऊं का लोकपर्व घुघुतिया

January 14, 2021 | samvaad365

कुमाऊं का लोक पर्व घुघुतिया बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. मकर संक्रांति और उत्तरायणी के इस पावन पर्व पर लोग घरों में घुघुतिया बनाकर इस त्योहार की तैयारियों में जुटे हैं.

पूरे कुमाऊं मंडल में इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. त्यौहार से एक दिन पहले महिलाएं, बच्चे, बड़े-बुजुर्ग घरों में घूमते बनाते हैं. घूमते बनाने के लिए आटा, तेल, सूजी, दूध, घी और गुड़ के पानी से आटा बनाकर उसके घूंघते बनाए जाते हैं.घुघुतिया त्योहा उत्तरायणी मेले में पारंपरिक नृत्य करते दिखे हरदा, गाया कुमाऊंनी झोड़ा-चांचरीयही नहीं बच्चों की उत्सुकता के लिए ढोल, तलवार, ढाल और चकरी सहित अन्य आकार के घूंघते भी बनाए जाते हैं. जिसे बच्चों द्वारा पहले कौवा को खिलाया जाता है. इसके बाद प्रसाद स्वरूप इसे ग्रहण किया जाता है. घूंघते को अपने नाते-रिश्तेदार, सगे-संबंधियों और आस-पड़ोस के लोगों को बांटा जाता है और त्योहार की खुशियां साझा की जाती है.

घुघुतिया त्यौहार को मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोक कथा है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कुमाऊं में चंद्रवेश के राजा राज करते थे. उस समय राजा की कोई संतान नहीं थी. एक दिन राजा और रानी बागनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति की मनोकामनाएं की. कुछ समय के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भय रखा. जबकि, मां प्यार से घुघुती के नाम से पुकारती थी और उसके गले में एक माला भी डाली थी.जब घुघुती परेशान करता तो मां उस दौरान ‘काले कौवा काले घुघती की माला खाले..’ बोलकर डराती थी. ऐसा करने पर कौवे भी आ जाया करते थे. धीरे-धीरे घुघुती और कौओं की दोस्ती हो गई. उधर, दूसरी ओर राजा का एक मंत्री घुघुती को मारकर राजगद्दी हासिल करना चाहता था. एक बार षडयंत्र के तहत मंत्री घुघुती को उठाकर जंगल ले गया. तभी एक कौवे ने मंत्री को घुघुती को ले जाते हुए देख लिया. जिसके बाद कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा.उसे कौवे की अवाज सुनकर बाकी कौवे भी जमा हो गए. सभी कौवों ने मंत्री पर अपनी नुकली चोचों से हमला कर घायल कर दिया. जबकि, घुघुती की मां समेत राजमहल में घुघुती के लापता होने से सभी परेशान हो गए थे. बाद में कौवों की मदद से घुघुती मिल गया. तब इस खुशी में घुघुती के घर में बहुत सारे पकवान बनाए गए. जहां कौवों को बुलाकर घुघुती ने एक पकवान खिलाए. उसके बाद से ही यह त्योहार मनाया जाने लगा.

स्थानीय लोगों का कहना है कि आधुनिकता में भी इस त्योहार का महत्व कम नहीं हुआ है. अभी भी लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. सरकार को इस त्योहार बढ़ावा और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए. जिससे पहाड़ की संस्कृति और पारंपरिक घुघुतिया त्यौहार को बचाया जा सके.

कुमांऊ में कभी एक दौर ऐसा भी था जब दोहरी-तिहरी घुघुतों की माला पहन कर बच्चे, वृद्ध और महिलाएं कौवोंं को बुलाकर उत्तरायणी का स्वागत किया करते थे.आज धीरे-धीरे ये परंपरा लुप्त होती जा रही है. पलायन और समय के अभाव के कारण लोग इन पुरानी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं. उस दौर में जिन घरों में कौवों को घुघुते खाने को मिलते थे, वहां आज ताले लटके हैं. रोजगार की तलाश में यहां से लोग ही बल्कि त्योहारों की चमक भी ‘पलायन’ कर चुकी है, जो कि चिंता का विषय है.

(संवाद 365/प्रदीप महरा)

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