टिहरी: टिहरी झील के पानी के उतार चढ़ाव से झील से सटे गांवों में भूस्खलन और भूधसांव बढ़ने लगा है। वहीं इन दिनों हो रही बारिश से तो ग्रामीणों की नींद उड़ गई है। बारिश से जहां मकानों के कभी भी गिरने का खतरा बना हुआ है वहीं दहशत के साये में जीने को मजबूर ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
टिहरी डैम की झील से सटे नंदगांव, रोलाकोट, ऊठड़, पिपोला, भटकंडा सहित 17 गांवों में झील के पानी के उतार चढ़ाव से भूस्खलन भूधसाव से ग्रामीणों की परेशानियां लगातार बढ़ रही है। कई मकानों में दरारें बढ़ गई है तो कई मकान बल्लियों के सहारे टिके हुए है। बारिश के चलते ग्रामीणों के मकानों में पानी और मलबा घुस रहा है जिससे ग्रामीणों की नींद उड़ गई है। हल्की सी बारिश में ही ग्रामीण सहम जाते हैं और चौखट पर बैठकर पूरी रात जागकर गुजार देते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार मकान का कई हिस्से ढह जाते हैं और वो भागकर अपनी जान बचाते हैं।
मकानों की स्थिति ये है कि अब वो रहने लायक नहीं बचे हैं लेकिन कोई दूसरा सहारा नहीं होने के चलते ग्रामीणों को मजबूरन उसी टूटे हुए मकान में रहना पड़ रहा है जिससे कभी भी गिरने का खतरा बरकरार रहता है और ग्रामीणों को ये पता नहीं होता है कि वो आज सोये हैं तो कल सुबह का सूरज देख पाएंगे या नहीं। जिसके चलते कई लोगों ने अपना घर बार छोड़ दिया है।
कई बार टिहरी झील से सटे प्रभावित गांवों का सर्वे हुआ लेकिन सर्वे रिपोर्ट फाइल में कहीं धूल फांक रही है और ग्रामीण किसी तरह अपने जीवन के दिन काटने को मजबूर है लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है..वहीं डीएम का कहना है कि मामले में टीएचडीसी और पुर्नवास विभाग से वार्ता करने की बात कह रहे हैं।
ऐसे में टिहरी झील प्रभावित ग्रामीण दहशत के साये में जीने को मजबूर है और इस आस पर बैठे हैं कि कभी उनकी सुनवाई होगी और वो भी एक सामान्य जीवन जी सकें और अब ग्रामीणों का कहना है कि मांग पर कार्यवाही नही की गई तो जलसमाधि लेने को बाद्य होंगे।
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संवाद365/बलवंत रावत