उत्तराखंड के कई गांव अपनी अलग अलग विशेषताओं को लेकर जाने जाते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जिसके पनीर की डिमांड काफी ज्यादा है इसीलिए इस गांव को पनीर वाला गांव यानी कि पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है।
टिहरी जिले के दूरस्थ जौनपुर ब्लाक के रौतू की बेली गांव का पनीर आज गांव की पहचान बन चुका है, इसे पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है. करीब 250 परिवार वाले रौतू की बेली गांव में 75 फीसदी से अधिक लोग खेतीबाड़ी और गाय भैंस पालते हैं। नगदी फसलों के उत्पादन के साथ ही ये लोग घरों में पनीर बनाते हैं। जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है. ग्रामीण प्रतिदिन 50 से 70 किलो तक पनीर का उत्पादन करते हैं। जो दोपहर होने से पहले ही बिक जाता है. पनीर की क्वालिटी ऐसी कि जो एक बार ले वो दोबारी बड़ी डिमांड पर आता है।
रौतू की बेली गांव देहरादून-मसूरी-उत्तरकाशी- टिहरी को जोड़ने वाले थत्यूड़. भवान सड़क के किनारे बसा है, ग्रामीण शाम को पारम्परिक तरीके से पनीर बनाते हैं। और सुबह सड़क किनारे दुकानों में ही पनीर बेचते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि शुद्धता और गुणवत्ता के कारण ही उनके यहां पनीर की डिमांड लगातार बढ़ रही है और यदि सरकार मदद करे तो वो इस रोजगार को और बढ़ा सकते है और उन्हें मार्केट मिल जाएगी तो और लोगों को भी रोजगार मिलेगा।
रौतू की बेली गांव के ग्रामीणों की मेहनत आज अन्य ग्रामीणों के लिए भी एक बेहतरीन उदाहरण है, जिससे गांव में ही स्वरोजगार को बढ़ावा देकर पलायन को रोका जा सकता है. वहीं कोविड के चलते बेरोजगार हुए लोगों को भी इससे रोजगार मिल सकता है।
(संवाद 365/ बलवंत रावत )
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