सालों से प्यासा है यह गांव, कोई सुध लेने वाला नहीं…

April 28, 2019 | samvaad365

विकास की हसरत के साथ लगभग 18 साल पहले उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था। इन सालों में कई सरकारें आई और गईं। सभी ने राज्य के विकास के नाम पर शहरी इलाकों के विकास को तवज्जो दी। लेकिन प्रदेश के पहाडी क्षेत्रों में आज भी कहीं लोग शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कई किलोमीटर का सफर तय करते हैं तो कहीं पीने के पानी के लिए भी काफी लम्बा पैदल सफर तय करना पड़ता है। प्रदेश के कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां आज भी लोगों को पानी के लिए भटकना पड़ता है तो वहीं कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां सालों से पेयजल सुविधा बदहाल है। कोटद्वार के दुगड्डा ब्लॉक स्थित बस्यूर गांव में भी पेयजल योजना महज शोपीस बनकर रह गई है। पिछले दो सालों से ग्रामीण गाड़-गदेरों से पानी ढोने के लिए मजबूर हैं। लेकिन कई बार शिकायत के बाद भी मामले की कोई सुध लेने वाला नहीं है।

बता दें कि पेयजल किल्लत से जूझ रहे बस्यूर गांव में पेयजल आपूर्ति के लक्ष्य से वर्ष 2017 में तुसरानी-सेंधीखाल पेयजल योजना से गांव को जोड़ने की योजना बनाई गई थी। लिहाजा विभाग की ओर से गांव तक मुख्य टैंक बनाकर पानी पहुंचाया गया। लेकिन विभाग खुले में पाइप बिछाकर चलता बना। एक माह तक ग्रामीणों को पीने का पानी मिला लेकिन देखरेख की कमी के चलते नतीजा यह हुआ कि पाइप क्षतिग्रस्त हो गए। जिसके बाद से गांव में पेयजल आपूर्ति ठप हो गई। लिहाजा विभाग की ओर से बनाई गई टंकी और स्टैंड पोस्ट पिछले दो साल से शोपीस बने हुए हैं।
गांव में पेयजल आपूर्ति ठप होने से ग्रामीणों ने जलसंस्थान पर उनके गांव की उपेक्षा का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से वह पानी के लिए तरस रहे हैं। वहीं जलसंस्थान के अधिकारी ने बस्यूर गांव के लिए पूर्व में स्थापित योजना की मरम्मत कर ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कराने की उचित व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है। खैर यह तो वक्त ही बताएगा कि कितने समय तक ग्रामीणों को इस जल संकट से जूझना होगा। अधिकारी की ओर से दिए गए आश्वासन पूरे होंगे या कोरे ही रहेंगे।

संवाद365 / पुष्पा पुण्डीर

 

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