उत्तराखंड लोक गायक दरवान नैथवाल के दो गीत मचा रहे हैं धूम… पहाड़ों की खूबसूरती बयां करते हैं ये गीत…

February 17, 2020 | samvaad365

देहरादून: उत्तराखंड के लोकगायक दरवान नैथवाल  के हाल ही में दो गानों के वीडियो सामने आए थे। इन दोनों ही गानों को दर्शकों का खूब प्यार मिल रहा है। गीत आंग भी हुन्ति, डोलमा स्याळी पिछले कुछ सालों में हिमालय क्षेत्र की सुंदरता को उकेरते हुए ऐसे गीत आज के दौर में कम ही देखने को मिलते हैं। दोनों ही  गीतों में वेशभूषा, कलर काम्बीनेशन, शानदार लोकेशन दिल को सुकून देती हैं। गीतों में फोल्क और फैशन का मिश्रण लाजवाब है। यू-ट्यूब और स्मार्ट टीवी के जमाने में दर्शकों को ये गीत अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

आंग भी हुन्ति (द वैली ऑफ स्नो) और  डोलमा स्याळी कहने को ये दो अलग अलग गीत हैं मगर ये वास्तव में एक जनजाति का समृद्धशाली अतीत है। इसे देखिए और इसकी खूबसूरती का आनंद लीजिए।

जानिए दरवान नैथवाल के बारे में….

दरवान नैथवाल ने 1983-84 के आसपास बाल कलाकार के रूप में आकाशवाणी से करियर शुरू किया। तब नजीबाबाद रेडियो के उपनिदेशक नित्यानंद मैठाणी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। उनका पहला गीत ‘फ्योलडिया त्वै देखिक’ आया था। चमोली जिले के आखिरी छोर पर दुर्गम नीति गांव में जब ठंड बहुत ज्यादा हो जाती है तो दरवान के माता पिता और भोटिया जनजाति के वो तमाम वाशिंदे निचले इलाके पीपलकोटी के कोडिया गांव में आ जाते थे। इस विंटर माइग्रेशन के दौरान सामूहिक भागीदारी से परम्पराओं का पालन किया जाता है। भोटिया समुदाय के लोग चीन से 62 की लड़ाई से पहले तिब्बत से व्यापार करते थे। दरवान नैथवाल ने पिछले कई सालों में धीमे-धीमे काम किया। लाली लछिमा, रंत रैबार, रमछोल, राणि राधिका, म्यारा मुल्के रीत एलबम निकाले और नंदाराजजात का डाक्यूमेंटेशन किया। वह कई संस्थाओं से पुरस्कृत भी हो चुके हैं।

हाल ही में रिलीज हुए गीत

आंग भी हुन्ति

ये गीत बेहद दिलकश तरीके से फिल्माया गया है। गीत अपने भीतर पलायन की पीड़ा उकेरता है। पहाड़ खाली हो गए, पलायन के असर से यहां के भोजन, खानपान को लोग भूलने लगे। पहाड़ी लोगों की एक खासियत तो है….

जितनी भी आलीशान जिंदगी जी लें…, फाइव स्टार में खा लें…, विदेशी हो जाएं…,जब सुकुन चाहिए तो अपना पहाड़ ही याद आता है। गीत में ऐसा ही कुछ है। ये गीत भोटिया, तिब्बती, लद्दाखी भाषा में है और इसकी शूटिंग रोहतांग, स्पिति, लेह, लद्दाख, कश्मीर, हिमाचल के चांसल और चमोली के नीति घाटी में की गई है। इसके लिए उन्होंने पिछले 15 साल के फुटेज भी इस्तेमाल किए।  गीत में बस्ग्याल(बरसात), ह्यूंद(सर्दी के दिन) में निचले इलाकों में माइग्रेशन करते हुए हिमालयी क्षेत्र की जनजाति परिवारों का वैभव दिखता है। ऊन की पांखी(लव्वा), चार तोले की सोने की नथ, चंद्रहार, स्यूण, सांगल धारण किए ठेठ पहाड़ी महिला नंदा का प्रतीक दिखाई देती है।

गीत में एक संदेश भी है..

वहीं भग्यान इन घाटियों में वापस आएगा, जिनके रिश्तेदार वहां होंगे। इसलिए अपने गांवों को न छोड़े….,गांव के किवाड़ बंद रहेंगे और दीवारें कमजोर पड़ रही होंगी। छत टपकते-टपकते एक दिन भराभराकर टूट पड़ेगी।

डोलमा स्याळी

भोटिया जनजाति, तिब्बत, लद्दाख में जहां भी खूबसूरत युवती होगी। उसका नाम डोलमा ही होगा। ये न सिर्फ भाषाई बल्कि संस्कृति और खानपान के लिहाज से मिलते जुलते उच्च हिमालयी समाज का प्रतीक नाम भी है, दरवान नैथ्वाल ने डोलमा को इसीलिए अपने गीत का आधार बनाया है। काफी खूबसूरती से इस गीत को लद्दाख, रोहतांग, स्फिति, नीति और चकराता में फिल्माया गया है।  गीत में जीजा-साली(भीना-स्याळी) के बीच का निश्च्छल प्रेम भी है। भीना-स्याळी पर बने गीतों पर लोग सवाल उठाते हैं।

ये सही नहीं है

भीना-स्याळी का रिश्ता पूरी तरह संदेह से परे है। दूल्हे का छोटा भाई भी जीजा (भीना) ही कहलाता है। उसी तरह दुल्हन की छोटी बहनें साली (स्याळी) ही होंगी। दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हैं, तो इस रिश्ते पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। फिर स्याळी लोकगीतों में कहीं बेटी के रूप में भी है तो कहीं बहन के रूप में भी। भीना को भी देवता सदस्य माना जाता है, जो हर मुसीबत में अपनी स्याळी के परिवार का ख्याल रखता है। बहरहाल, दरवान नैथवाल के दोनों गीत यू-ट्यूब पर उपलब्ध हैं। आप भी देखिए ये गीत….

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साभार/शैलेन्द्र सेमवाल

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