एक साल के आर्यन की मौत का जिम्मेदार किसे कहा जाए… क्या 19 साल के उत्तराखंड को ?

June 10, 2019 | samvaad365

पिथौरागढ़ : एक साल के आर्यन ने आपनी मां की गोद में सोते हुए इस दुनिया से आज अलविदा कह दिया… कौन है एक साल का आर्यान ? और कितने हैं प्रदेश में ऐसे आर्यन ? इस सवाल का जवाब क्या हमारी सरकारें दे पाएंगी. कुमांऊ के छः जिलों के लिए बने एकमात्र सुशीला तिवारी मेड़िकल कालेज में न्यूरो सर्जन के नहीं होने से बच्चे के इलाज की गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाई. न्यूरो सर्जन न होने से स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिली और स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के चलते 1 साल के आर्यन की मौत हो गई. कोई नईं बात नहीं है. ऐसे कई आर्यन न जाने कितने ही आर्यन इस दुनिया को अलविदा कह गए हैं. लेकिन बोला किसे जाए … ये बड़ा सवाल है एक साल के आर्यन की मौत ने 19 साल के उत्तराखंड पर भी कई सवाल उठाए हैं. इस गरीब परिवार ने अपना चिराग तो खो दिया लेकिन अब समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें.

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धारचूला तहसील के ग्राम हाट निवासी  रुकम सिंह बोरा का एक साल का बेटा आर्यन बीमार हो गया था. बुखार के साथ बेहोशी छाने लगी. डरा सहमा रुकम अपने जिगर के लाल को जिला अस्पताल ले आया. डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे के दिमाग में पानी भर गया है. इसके इनफेक्शन से बच्चे की जान खतरे में आ गई है. बच्चे को बाहर इलाज के लिए ले जाना पडे़गा. यह सुनकर इस गरीब की जमीन खिसक गई. तभी दो नर्स नीलम पांडे, रजनी चंद इसके लिए भगवान बनकर सामने आई. दोनों ने अपनी जेब से धन देकर इनको 1 जून को सुशील तिवारी मेड़िकल कालेज भेजा. मेड़िकल कॉलेज ने न्यूरो सर्जन नहीं होने का हवाला देकर बच्चे को भर्ती तक नहीं किया. इन नर्सों ने हल्दानी में भिक्षा मांगने वाले बच्चों के लिए काम करने वाली गुंजन बिष्ट अरोरा को बताया. गुंजन की सूचना पर  सामाजिक कार्यकर्ता गुरविन्दर सिंह चड्डा ने इस बालक को हल्द्वानी के एक निजि अस्पताल में भर्ती करवाया. डाक्टर की राय पर इस बच्चे को दिल्ली भेजने के लिए गुरविन्दर सिंह चड्डा ने एम्बुलेंस रुपये का इंतजाम कर आर्यन को रवाना किया. सुशीला तिवारी मेड़िकल कालेज की गेट पर धोखा खा चुके रुकम ने दिल्ली की जगह अपने घर वापस जाना उचित समझा. जबकि दिल्ली में चड्डा ने रहने से लेकर इलाज की व्यवस्था की थी. जब इस बात की सूचना भाजपा नेता जगत मर्तोलिया को दी गई कि रुकम अपने जिद से घर चार जून को लौट आया है. तो हाट निवासी नर्मदा रावल व नवीन थलाल को इस बच्चे को फिर अस्पताल भेजने की जिम्मेदादी दी.

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लाख कोशिश के बाद भी रुकम घर से बाहर जाने को राजी नहीं हुए. सरकारी हैल्थ सिस्टम से मिले अविश्वास से रुकम टूट चूका था. इस कारण एक बच्चे की किलकारी हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गई. किसे इसका दोष दे. कौन जिम्मेदार है. भाजपा नेता जगत मर्तोलिया ने कहा कि 19 साल का उत्तराखंड इसके लिए जिम्मेदार है. एक सरकार एक पार्टी को क्या दोष दे. लेकिन आज वाकई में बड़ा सवाल ये बन गया है कि किसको ऐसी घटनाओं का दोष दिया जाए. क्या 19 सालों में मूलभूत सुविधाएं नहीं होनी चाहिए थी. क्या पहाड़ों बिना संसाधनों के गरीब मरते ही रहेंगे. और अगर यही होना है तो इसे नियति ही समझा जाए..!

संवाद 365/ नीरज कुमार

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