क्या ईगास को मिल पाएगी उसकी पुरानी पहचान ?

November 26, 2020 | samvaad365

उत्तराखंड के पारंपरिक लोकपर्व ईगास को प्रदेशभर में बड़ी धूम-धाम से मनाया गया. इस विलुप्त हो रहे पारंपरिक पर्व की रोशनी को फिर से गांव से लेकर शहरों तक में लौटाने की कोशिश में लगातार राज्य सरकार के प्रयास जारी हैं. कई मान्यताओं के अनुसार ईगास बग्वाल को लेकर एक मान्यता ये है की भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद पहाड़ी इलाकों में यह खबर लगभग 11 दिन बाद मिली जिसके बाद पहाड़ों में इसे इगास बग्वाल के रूप में मनाया गया इसी के अनुसार सदियों से दीपावली के 11 दिनों के बादव उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में दीपावली के 11 दिन बाद इगास का पर्व मनाया जाता है.

प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी ईगास के इस लोकपर्व को मनाया और प्रदेश वासियों को ईगास के महत्व को बताते हुए प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दीं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने गढ़वाली में ट्वीट करते हुए लिखा की प्रदेश का सबि भै बैण्यूं, दाना सयाणा, छुट्टा, बड़ों थैं ‘इगास बग्वाल’ की भौत-भौत बधै।. साथ ही उनहोंने कोरोना के मद्देनजर लोगों से जरूरी सावधानियां बरतने को भी कहा.

वहीं उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने भी दिल्ली स्थित अपने आवास पर दिए जला कर और रंगोली बनाकर ईगास बग्वाल मनाई.

नैनीताल से बीजेपी सांसद अजय़ भट्ट भी ईगास के मौके पर अपने पैतृक गांव धनखल द्वाराहाट पहुंचे जहां अपनों के बीच रहकर उनहोंने इस लोक पर्व को मनाया.

वहीं उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने भी ईगास बग्वाल का पर्व खूब धूम-धाम और पारंपरिर रुप से मनाया. प्रेमचंद अग्रवाल ने इस मौके पर कार्यक्रम का भी आयोजन किया और स्थानीय लोगों के साथ लोकपर्व को मनाया. इगास बग्वाल में चीड़ की लकड़ी से बने भैलू को घुमाने की मान्यता बहुत पुरानी है. प्रेमचंद अग्रवाल ने पारंपरिक भैलू तो घुमाया ही साथ में गड़वाली गानों में जमकर नाचे भी. उनहोंने ईगास को लेकर मनाई जाने वाली मान्यताओं को बताते हुए कहा की हमें अपनी लोक संसकृति को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देते हुए इसे और फैलाने का काम करना चाहिए.

जहां एक तरफ ईगास को उत्तराखंड में सरकार फिर से सरेहजने और हर घर तक पहुंचाने की कोशिश  कर रही है तो वहीं विदेशों में भी कुछ लोग उत्तराखंड की इस लोक संस्कृति को नहीं भूले हैं. ऐसे ही एक उत्तराखंडी है कनाडा में रहने वाले मुरारी लाल थपलियाल जो कनाड़ा में रहते हुए भी उत्तराखंड की इस संस्कृति से जुड़े हुए हैं औऱ हर साल ईगास के मौके पर दिए जरूर जलाते हैं. उनहोंने कनाडा से उत्तराखंड वासियों को ईगास की बधाई दी और लोगों से अपनी संस्कृति से जुड़े रहने को कहा.

ईगास बग्वाल का ये पौराणिक औक पारंपरिक पर्व विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है. शहरी क्षेत्रों में रह रहे लोगों धीरे-धीरे ईगास का महत्व और इसका नाम तक भूलते जा रहे हैं. इसी के मद्देनजर प्रदेश की सरकार भी हमारी इस लोक संस्कृति को फिर से उसकी पुरानी पहचान दिलाने में लगी है. आप सभी से भी अनुरोध है अपनी इस खूबसूरत लोक संस्कृति से जुड़े रहें और पहाड़ों को फिर से रोशन करें. आप सभी को ईगास बग्वाल की हार्दिक शुभकामनाएं.

(संवाद 365/विकेश)

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