द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए

November 22, 2023 | samvaad365

पंच केदार में द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर मंदिर के कपाट आज सुबह 8.30 बजे शुभ लग्न पर विशेष पूजा-अर्चना के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। जिसमें की दानी-दाताओं के सहयोग से मंदिर को पांच क्विंटल फूलों से सजाया गया। द्वितीय केदार मद्महेश्वर चल उत्सव डोली में विराजमान होकर मंदिर की परिक्रमा और अपने ताम्र पात्रों के निरीक्षण करते हुए शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए लिए निकल पड़े। इस वर्ष 12,879 श्रद्धालुओं ने भगवान मद्महेश्वर के दर्शन  किये। उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद यह पहला मौका है, जब इतनी अधिक संख्या में शिव भक्त यहां पहुंचे हैं।

मद्महेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है। जोकि समुद्रतल से 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर मंदिर पंच केदारों में से एक केदार है और यहां भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है. मद्महेश्वर मंदिर से संबंधित मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर सच्चे मन से ध्यान लगाता है, उसे शिव के परम धाम में स्थान मिलता है। यहा मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू लिंग विराजमान है, जिसके दर्शनों को इस वर्ष 12,879 श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। इस वर्ष 22 मई को द्वितीय केदार की यात्रा शुरू हुई थी। कपाट खुलने के मौके पर भी यहां 350 श्रद्धालुओं ने बाबा मद्महेश्वर के दर्शन किए थे। रांसी गांव से मंदिर तक 18 किमी की पैदल दूरी के बावजूद, इस वर्ष द्वितीय केदार के दर्शनों के लिए भक्तों में खासा उत्साह देखने को मिला।

मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। मध्यमहेश्वर मंदिर के निर्माण की कथा के अनुसार जब पांडव महाभारत का भीषण युद्ध जीत गए थे तब वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास गए लेकिन शिव उनसे बहुत क्रुद्ध थे। इसलिए शिवजी बैल का अवतार लेकर धरती में समाने लगे लेकिन भीम ने उन्हें देख लिया। भीम ने उस बैल को पीछे से पकड़ लिया। इस कारण बैल का पीछे वाला भाग वही रह गया जबकि चार अन्य भाग चार विभिन्न स्थानों पर निकले। इन पाँचों स्थानों पर पांडवों के शिवलिंग स्थापित कर शिव मंदिरों का निर्माण किया गया था जिन्हें हम पंच केदार कहते हैं।

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