रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में कई तरह की जड़ी बूटियां, कंदमूलफल पाए जाते हैं. इनका उपयोग पहाड़ी क्षेत्रों में परंपरागत तौर पर किया जाता रहा है. इन दिनों पहाडी क्षेत्रों में प्रवासी कई वर्षों बाद हिंसर का आनंद ले रहे, दरअसल हिमालयी रसबेरी हिंसर का जवाब नहीं है। खाने में स्वादिष्ट और कई गुणों से भरपूर ये फल लाजवाब है। हिमालयी क्षेत्र में समुद्रतल से 750 से 1800 मीटर तक की ऊंचाई पर बहुतायत में पाया जाने वाला हिंसर बेहद जायकेदार फल है। यह भी जंगलों और पहाड़ी रास्तों पर अपने आप उगता है, हिंसर में अच्छे औषधीय गुण पाए जाने के कारण इसे विभिन्न रोगों के निवारण में परंपरागत औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान तक हिंसर के संपूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण और परीक्षण के उपरांत ही इसे एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी ट्यूमर और घाव भरने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अच्छी फार्माकोलॉजी एक्टिविटी के साथ-साथ हिंसर में पोषक तत्व, जैसे कॉर्बोहाइड्र्रेट, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक और एसकारविक एसिड प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
इसके अलावा हिंसर का उपयोग जैम, जेली, विनेगर, वाइन, चटनी आदि बनाने में भी किया जाता रहा है। यह मैलिक एसिड, सिटरिक एसिड, टाइट्रिक एसिड का भी अच्छा स्रोत है। यही वजह है कि धीरे-धीरे इसके फलों से बाजार भी परिचित होने लगा है, पहाड़ों में इन दिनों इस फल की खूब पैदावार हो रखी है. जिसका आनंद बाहर से आने वाले प्रवासी भी जमकर ले रहे हैं.
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हिसर के कई औषधीय फायदे हैं. लेकिन यह फल अभी भी सिर्फ अपनी पौध तक ही सीमित है, बहरहाल हिसर को देखकर किसी को भी अपने बचपन की याद आ जाए और इन दिनों कोरोना के चलते कई प्रवासी वापस अपने गांव की और लौटे हैं ऐसे में उनके लिए भी हिसर के साथ उनके पुराने दिन लौट आए हैं।
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संवाद365/कुलदीप राणा