रामपुर तिराहा कांड: 30 साल बाद मुजरिमों को सजा, पीएसी जवान मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप को उम्रकैद

March 18, 2024 | samvaad365

मुजफ्फरनगर। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान 1 अक्तूबर 1994 की रात और 2 अक्तूबर को गांधी जयंती की भोर रामपुर तिराहा पर मानवता को शर्मशार करने वालों पर अब 30 साल बाद कोर्ट का हथौड़ा पड़ना शुरू हो गया है। सोमवार को महिलाओं से सामूहिक दुष्कर्म, छेड़छाड़ आदि के मुजरिम उत्तर प्रदेश पीएसी की 41वीं वाहिनी के दो तत्कालीन जवानों मिलाप सिंह व वीरेंद्र प्रताप को कोर्ट ने उम्रकैद सुनाई है। दोनो पर 50-50 हजार जुर्माना भी किया गया है।

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अपर सत्र न्यायालय ने सामूहिक दुष्कर्म समेत कई धाराओं में सुनाई सजा

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-7 शक्ति सिंह की कोर्ट ने सीबीआई बनाम मिलाप सिंह मामले में बीते 15 मार्च को फैसला सुनाते हुए दोनो को मुजरिम पाया था। सजा सुनाने के लिए सोमवार का दिन तय किया गया था। सोमवार को कोर्ट ने दोनो को उम्रकैद सुनाई। इस दौरान पीड़ित पक्ष, उत्तराखंड आंदोलनकारी और मीडिया का जमावड़ा कोर्ट परिसर में रहा। अभियोजन पक्ष की ओर से शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) परवेंद्र सिंह के साथ ही उत्तराखंड आंदोलनकारियों की ओर से अनुराग वर्मा इस मामले में पैरवी की। कुल 15 गवाह मामले में पेश किए गए थे। तब गाजियाबाद में तैनात दोनो मुजरिम अब पीएसी से सेवानिवृत हो चुके हैं। मिलाप सिंह मूल रूप से जनपद एटा के निधौली कलां थाना क्षेत्र के होर्ची गांव और वीरेंद्र प्रताप सिद्धार्थ नगर के गौरी गांव का निवासी है।

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ये था पूरा मामला

अविभाजित उत्तर प्रदेश के तत्कालीन आठ पर्वतीय जिलों के अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर अगस्त-1994 को उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक और पर्वतीय गांधी स्व. इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व में पूरे क्षेत्र और देश के कई हिस्सों में प्रचंड जनांदोलन हुआ। तत्कालीन मुलायम सिंह-मायावती नीत सपा-बसपा गठबंधन की सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए जमकर दमनचक्र चलाया। खटीमा और मसूरी के बाद 2 अक्तूबर को गांधी जयंती की तड़के मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस और पीएसी ने उत्तराखंड आंदोलनकारियों पर फायरिंग की। इसमें कई युवाओं की मौके पर ही मौत हो गई और कुछ को पुलिस ने लापता कर दिया। 1 अक्तूबर 1994 की रात दिल्ली रैली के लिए उत्तराखंड और अन्य हिस्सों से कूच कर रहे हजारों आंदोलनकारियों की बसों को पुलिस-पीएसी ने रामपुर तिराहा में रोक लिया। इस दौरान कई आंदोलनकारी महिलाओं से दुर्व्यवहार और कुछ के साथ पुलिस-पीएसी ने दुष्कर्म दुष्कर्म भी किया। इस घटना के विरोध में उत्तराखंड समेत कई स्थानों पर अगले दिन व्यापक हिंसा हुई और कई दिन तक कर्फ्यू लगा रहा। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति और कई सामाजिक व मानवाधिकार संगठनों की मांग व याचिका पर कोर्ट के निर्देश के बाद इस वीभत्स कांड की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने कई मामले दर्ज किए, जो विभिन्न कोर्ट में चल रहे हैं। इन्हीं से से 25 जनवरी 1995 को उक्त पीएसी कर्मियों के खिलाफ भी मुकदमे दर्ज किए गए थे।

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