देव भूमि के महान सपूत अमर शहीद श्री देव सुमन जी की पुण्य तिथि पर शत् शत् नमन

July 25, 2022 | samvaad365

84 दिन लंबी भूख हड़ताल के शहीद श्री देव सुमन का टिहरी रियासत के बमुण्ड पटूटी के जौल गांव मैं 25 मई 96 को हरिराम समाज सेवी के घर मैं जन्म हुआ। 99 की हैजा महामारी में पिता चल बसे।
टिहरी से मिडिल पास किया। 932 में देहरादून में अध्यापक बने। 936 में हिंदी साहित्य सम्मेलन से
“विशारद’ किया। 930 में गांधी जी के नमक सत्याग्रह में कूद पड़े। ‘सुमन सौरव’ एक राष्ट्रीय कविता संग्रह प्रकाशित किया।

साप्ताहिक ‘हिन्दू’ समाचार पत्र का संपादन शुरू किया। 937 में शिमला हिंदी साहित्य सम्मेलन के
कार्यकारी अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 938 में जवाहर लाल नेहरू पौड़ी आए। उनकी सभा मैं सुमन जी ने दोनों टिहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल की अखण्डता पर जोर दिया। 939 में टिहरी रियासत मैं प्रजामंडल (रियासतों में कांग्रेस, प्रजा मंडल के नाम से सक्रिय थी) की स्थापना के बाद सक्रिय सदस्य बने। 938 में लैंसडौन से साप्ताहिक ‘कर्मभूमि’ का प्रकाशन शुरू हुआ। वे संपादक मंडल में थे। 939 में हिमालय क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं का प्रांतीय सम्मेलन हुआ। जन समस्याओं पर प्रकाश डाला। ‘गढ़ सेवा संघ” का नाम हिमालय सेवा संघ रखा। 940 में दो बार टिहरी गए। जन सभाओं पर लगे प्रतिबंध को हटाने में प्रयासरत रहै।

उनका प्रभाव विद्यार्थियों पर था। 942 मैं सुमन जी को टिहरी मैं गिरफ्तार कर राज्य से निष्कासन का
आदेश दिया। टिहरी प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। 942 मैं अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा बुलन्द करते हुए
टिहरी को कूच किया। देव प्रयाग मैं गिरफ्तार कर देहरादून जेल मैं ढूंस दिया। वहाँ से आगरा जेल भेजा।
नवम्बर में रिहा हुए। टिहरी राज्य के अत्याचारों के खिलाफ बोल उठे “मेरा कार्यक्षेत्र टिहरी है। वहीं कार्य
करना तथा जनता के अधिकारों के लिए सामन्‍्ती शासन के विरूद्ध लड़ना व मरना मेरा पुनीत कर्तव्य है। मैं जीवित रहते हुए जनता पर सामन्ती अत्याचार नहीं देख सकता।”

5 दिसम्बर 943 को सुमन जी ने टिहरी रियासत के जनरल मिनिस्टर को पत्र लिखा। साक्षात्कार चाहा।
8 दिसम्बर को पुलिस अधिकारी ने टिहरी जाने की इजाजत दी। परन्तु नरेन्द्र नगर मैं एक पुलिस कर्मी ने
बदतमीजी की। 27 दिसम्बर 943 को जब टिहरी जा रहे थे, उन्हें रोका, टिहरी जाने पर प्रतिबंध लगा
दिया। उनके पत्र व्यवहार का कोई जवाब नहीं मिला।

30 दिसम्बर 943 को टिहरी जेल मैं बंद कर दिया। उन पर अमानवीय जुल्म ढाए। पाँवों मैं 35 सेर की
बेड़ियां डाल दीं। 2। फरवरी 944 में सुमन जी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। उन्हें टिहरी के बाहर
से वकील बुलाने की इजाजत नहीं दी। सुमन जी ने स्वयं अपना केस लड़ा। उन्हें दो साल की सजा और
200 रुपया आर्थिक दंड दिया गया।

29 फरवरी 945 को जेल कर्मचारियों के दुर्व्यहार के कारण अनशन शुरू किया। राज्य की ओर अच्छे
व्यवहार के आश्वासन के बाद अनशन समाप्त किया। कुत्ते की दुम टेड़ी रही। कोई सुधार नहीं हुआ। सुमन जी पूरी तरह गांधीवादी थे। उन्हें टिहरी राजा की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला। मजबूर होकर 3 मई 945 से ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू किया। उन पर जोर डाला गया। दूध पिलाने का प्रयास किया गया।

झूठी प्रेस विज्ञप्ति जारी की गयी। 25 जुलाई 944 को 84 दिन की लम्बी भूख हड़ताल के बाद सुमन जी
की इह लीला समाप्त हो गई। 2000 रुपये के आर्थिक दंड वसूली के लिए जायजाद कुर्क करने का प्रयास किया गया। एक ‘सुमन जांच समिति’ बिठायी गयी। उसने लीपा-पोती की। सुमन जी ने अमानवीय भयावह अत्याचारों के खिलाफ जबरदस्त जंग लड़ी। सुमन जी जैसे साहसी सत्याग्रहियों के बलिदानों सै देश स्वतंत्र हुआ।

संवाद 365, डेस्क

यह भी पढ़ें- पौड़ी: डूंगरी गाँव घूमने आये दो युवकों की हुई पानी में डूबने से मौत

78903

You may also like