टिहरी: ढोल और जागर पहाड़ की पहचान है, जागर का नाम आते ही हमारे जहन में जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण की तस्वीर सामने आती है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे है, जो ढोल और जागर दोनों में प्रतिभावान है, ये महिला इन दोनों विधाओं में उत्तराखंड की पहली महिला ढोलवादक भी कही जा सकती है.
पहाड़ में ढोल और जागर में पु्रूषों का एकाधिकार रहा है, कुछ महिलाएं भी आगे आई लेकिन वो एक साथ इन दोनों विधाओं में पकड़ नहीं बना पाई. टिहरी जिले के दूरस्थ जौनपुर ब्लाक के हटवाल गांव की 38 वर्षीय उषा देवी ढोल और जागर दोनों विधाओं में महारथ हासिल किए हुए है. बचपन में दादा को ढोल बजाते और जागर गाते हुए देखकर उनमें ये इच्छा उत्पन्न हुई की वो भी ढोल और जागर सीखेंगी. सीखने की ललक से उषा ने आज ढोल और जागर ही नहीं ढोलक, तबला, धौंसी, हुड़का और डमरू में भी अपनी पकड़ बना ली है. जिसमें आज उनके पति सुमन दास भी उनका पूरा सहयोग करते है.
करीब 10 सालों से ढोल और जागर गा रही उषा ने अपने गांव ही नहीं टिहरी उत्तरकाशी जिले के साथ ही देहरादून में भी अपनी प्रस्तुति दी है. जिसके लिए उन्हें सम्मानित किया गया. उषा का मानना है कि समाज की सोच बदलने और सामाजिक विसंगतियों को दूर करने के लिए उन्होंने ये कदम उठाया जिसके जरिए आज उन्हें एक पहचान मिली है.
पहाड़ में प्रतिभाएं तो है लेकिन जरूरत है तो उन्हें सही गाइडेंस और प्लेटफार्म की जिससे उन्हें निखारा जा सके. टिहरी जिले की उषा आज इसका बेहतरीन उदाहरण है और नारी सशक्तिकरण के लिहाज से भी सांस्कृतिक योगदान को जोड़ती हैं.
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संवाद365/बलवंत रावत