पिता के सामने गाने से डरने वाली लता मंगेशकर आखिर कैसे बनी संगीत जगत का मशहूर नाम

September 28, 2020 | samvaad365

लता मंगेशकर, एक ऐसा नाम जो किसी पहचान का मोहताज नहीं है। लता जी एक प्रसिद्ध गायिका हैं। जिन्होंने संगीत जगत के अनगिनत गीतों को अपनी सुरीली आवाज़ से सदाबाहर कर दिया। बॉलीवुड समेत देश की सभी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी आवाज का जादू बिखेरने वाली स्वरकोकिला लता मंगेशकर का आज 91 साल की हो गई हैं। उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ था। उन्होंने अपनी गायकी से देश के साथ-साथ दुनिया में भी लोगों का दिल जीता है। लता मंगेशकर को गायिकी क्षेत्र में अमूल्य योगदान देने के लिए भारत रत्न, पद्म विभुषण, पद्म भूषण और दादासाहेब फाल्के अवार्ड जैसे कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

आज भी लता जैसी आवाज़ मिल पाना न के बराबर है। उन्हें सबसे ज्यादा गाने गाने वाली गायिका के तौर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में कई बार जगह मिल चुकी है। उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में लगभग 75 साल का वक्त हो गया है। लता जी को भारत रत्न से भी नवाज़ा जा चुका है। उन्होंने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गीत गाए हैं। बकौल लता जी, पिताजी जिंदा होते तो मैं शायद सिंगर नहीं होती…ये मानने वाली महान गायिका लता मंगेशकर लंबे समय तक पिता के सामने गाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थीं। फिर परिवार को संभालने के लिए उन्होंने इतना गाया कि सर्वाधिक गाने रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 1974 से 1991 तक हर साल अपने नाम दर्ज कराती रहीं।

लता जी मानती हैं कि पिता की वजह से ही वे आज सिंगर हैं, क्योंकि उनके पिताजी ने ही उन्हें संगीत की शिक्षा दी। हैरानी की बात ये है कि लता जी के पिता दीनानाथ मंगेशकर को लंबे समय तक मालूम ही नहीं था कि लता गा भी सकती है। लता जी को उनके सामने गाने में डर लगता था। वो रसोई में मां के काम में हाथ बंटाने आई महिलाओं को कुछ गाकर सुनाया करती थीं। मां डांटकर भगा दिया करती थीं कि लता के कारण उन महिलाओं का वक्त जाया होता था, ध्यान बंटता था।

लता जी के पिता दिनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे। लता भले ही अपने पिता के सामने गाने से डरती हों लेकिन उनके पिता एक अच्छे ज्योतिष थे। लता के मुताबिक उनके पिता ने कह दिया था कि वो इतनी सफल होंगी कि कोई उनकी ऊंचाइयों को छू भी नहीं पाएगा। साथ ही लता यह भी मानती हैं कि पिता जिंदा होते तो वे गायिका कभी नहीं बनती, क्योंकि इसकी उन्हें इजाजत नहीं मिलती। पिता की मौत के बाद लता ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन मीना के साथ मुंबई आकर मास्टर विनायक के लिए काम करने लगीं। 13 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में श्पहिली मंगलागौर फिल्म में एक्टिंग की। कुछ फिल्मों में उन्होंने हीरो-हीरोइन की बहन के रोल किए हैं, लेकिन एक्टिंग में उन्हें कभी मजा नहीं आया। पहली बार रिकॉर्डिंग की श्लव इज ब्लाइंड के लिए, लेकिन यह फिल्म अटक गई।

संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 साल की लता को सुना तो उस जमाने के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से मिलवाया। शशधर ने साफ कह दिया ये आवाज बहुत पतली है, नहीं चलेगी। फिर मास्टर गुलाम हैदर ने ही लता को एक फिल्म में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया। यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई। बाद में शशधर ने अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने लता को कई बड़ी फिल्में में गीत गाने का मौका दिया। लता अपनी खूबसूरत गायिकी के दम पर कई पुरस्कारों को अपने नाम  कर चुकी हैं। जिनमें फिल्म फेयर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994), राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990), महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967), 1969 – पद्म भूषण, 1974 – दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड, 1989 – दादा साहब फाल्के पुरस्कार, 1993 – फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 1996 – स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 1997 – राजीव गान्धी पुरस्कार, 1999 – एन.टी.आर. पुरस्कार, 1999 – पद्म विभूषण, 1999 – ज़ी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 2000 – आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 2001 – स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 2001 – भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न”, 2001 – नूरजहाँ पुरस्कार, 2001 – महाराष्ट्र भूषण जैसे बड़े सम्मान शामिल हैं।

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संवाद365/काजल

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